________________
सकने के कारण ही शुभ प्रात्मगत है । सोफिस्ट्स के विरुद्ध यह सिद्ध करने का प्रयास करता है कि शुभ व्यक्तिगत या प्रात्मगत नहीं है, उसका स्वरूप सार्वभौम और वस्तुगत है । वह सामान्य प्रत्ययों द्वारा समझा जा सकता है । नंतिक प्रत्ययों की परिभाषा या नैतिक धारणाओं की व्याख्या की जा सकती है । सुकरात ने यह बताया कि नैतिक गुणों की अपनी स्वतन्त्र वस्तुगत सत्ता है । वह व्यक्तियों के अनुभवों और भावनाओं पर निर्भर नहीं है । उन्हें बिना अपवाद के प्रत्येक व्यक्ति स्वीकार करता है । देश, काल का भेद मिथ्मा है । उदाहरणार्थ, संयम, न्याय आदि को सभी लोग सब समयों में शुभ कहेंगे । वे सर्वभौम हैं ।
सद्गुण, ज्ञान, श्रानन्द एक ही हैं—सोफिस्ट्स ने नैतिक मान्यताओं का जिस भाँति स्पष्टीकरण किया उससे सुकरात प्रसन्तुष्ट था । सोफिस्ट्स के सम्मुख उनका वैयक्तिक, व्यावसायिक तथा उपयोग प्रधान दृष्टिकोण था । सुकरात नैतिक - जिज्ञासु था। उसके जीवन का ध्येय प्राचरण की पूर्णता को प्राप्त करना था । उसने सदैव अपने को नीतिशास्त्र का विद्यार्थी माना । वह नैतिक विज्ञान का संस्थापक था । उसने सामान्य नैतिक धारणाओं की उचित वैज्ञानिक परिभाषा देना आवश्यक समझा । विशिष्ट नियमों को समझाना वाहा । विभिन्न नियमों को एक व्यवस्थित विधान के अन्तर्गत रखने का प्रयास किया । सोफिस्ट्स ने प्राकृतिक नियमों और यथार्थ नियमों एवं रीति-रिवाजों के बीच एक अनमेल खाई खोदी । सुकरात ने प्राकृतिक नियमों को यथार्थ नियमों का प्राधार बताते हुए सामान्य विश्वासों को समझाया । जनसामान्य द्वारा स्वीकृत शुभ-अशुभ के नियमों को उनकी प्रसंगत जटिलतानों के साथ स्वीकार किया। उनके विरोधों में साम्य स्थापित किया । उसके अनुसार सद्गुणों के जगत में श्रव्यवस्था नहीं है, व्यवस्था है, जिसे समझा और समझाया जा सकता है। उसके अनुसार सद्गुण ही ज्ञान है,' प्रज्ञा ही शील है । पूर्णज्ञान और पूर्णशील एक ही है । शुभ के ज्ञान को व्यवहार से पृथक् नहीं कर सकते । मूर्ख अथवा अज्ञानी ही अशुभ आचरण करता है। शुभ का ज्ञाता सदैव शुभ कर्म करता है, उसे ज्ञात रहता है कि शुभाचरण में उसका स्वार्थ निहित है । श्रतः
१. Virtue is Knowledge.
२. स्वार्थ (interest ) से सुकरात का अभिप्राय प्रात्मोन्नति और प्रात्मसन्तोष से है । वह कहता है कि व्यक्तियों को अपनी प्रात्मा को पहचानना चाहिए। उसके अनुरूप कर्म करना चाहिए।.
सामान्य निरीक्षण / ११
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org