________________
है और दूसरे के अनुसार उसका मूल रूप बौद्धिक है । दोनों प्रकार के मत के प्रतिपादकों ने अपनी मनुष्य-स्वभाव की धारणा के अनुरूप अपने-अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है ।
भावना : सुखवाद - मनुष्य को भावनात्मकं प्राणी माननेवालों ने कहा कि जीवन का चरम ध्येय अथवा नैतिक आदर्श सुख है । उसका कल्याण इन्द्रियसुख में निहित है । इस इन्द्रियपरक नीतिशास्त्र (Ethics of Sensibility) के सिद्धान्त के अनुसार जीवन का ध्येय सुख ( Hedone ) है | यह सिद्धान्त सुखवाद (Hedonism) के नाम से प्रसिद्ध है | सुखवाद का प्रतिपादन प्राचीन 'काल में यूनान में सिरेनैक्स (Cyrenaics) और ऍपिक्यूरियन्स ( Epicureans) ने किया और आधुनिक काल में उपयोगितावादियों (Utilitarians) ने । इसके तीन रूप मिलते हैं : अनुभवात्मक, बौद्धिक और विकासात्मक |
बुद्धि : बुद्धिपरतावाद - दूसरी ओर बुद्धिपरतावाद ( Rationalism) मिलता है जिसके अनुसार मनुष्य पूर्ण रूप से बौद्धिक है । उसका शुभ इन्द्रिय-सुख में नहीं, बौद्धिकता में हैं । बुद्धिपरतावाद को बुद्धिपरक नीतिशास्त्र (Ethics of Reason) भी कहते हैं । इसका प्रतिपादन प्राचीन काल में सिनिक्स (Cynics) नौर स्टोक्स (Stoics) ने किया तथा आधुनिक काल में काण्ट तथा सहजज्ञानवादियों (Intuitionists) ने ।
विरोध की प्रगति : समन्वय की श्रोर - नैतिक इतिहास के क्रम में सुखवाद और बुद्धिपरतावाद, दोनों ही, समय-समय पर भिन्न-भिन्न रूपों में प्रकट होते गये। दोनों सिद्धान्तों का अध्ययन यह बताता है कि नैतिक विचारकों ने शुभ (परमध्येय ) को समझने का प्रयास किया है । इन सिद्धान्तों के प्राचीन यूनानी प्रवर्त्तक यह भली-भाँति जानते थे कि शुभ का सम्बन्ध वास्तविक जीवन से है। शुभ वह है जिसे कि प्रयास द्वारा व्यक्ति प्राप्त कर सकता है और जिसका वह आत्म-साक्षात्कार कर सकता है । उसका प्रत्यक्षीकरण करके वह आत्मसन्तोष प्राप्त कर सकता है। यूनानी दर्शन श्रात्म-बोध (Self-realisation) को शुभ कहता है । आत्म बोध का क्या रूप है ? उससे अभिप्राय इन्द्रियतृप्ति से है या बौद्धिक सन्तोष से ? – यह प्रश्न अपने उत्तर के लिए स्वयं इस प्रश्न पर निर्भर है कि मनुष्य क्या है ? उसका क्या स्वरूप है और उसके सत्य रूप को भावना अभिव्यक्त करती है या बुद्धि ? 'आत्म- बोध' के स्वरूप को समझने में सुखवाद और बुद्धिपरतावाद दोनों ही दो रूप में सम्मुख आते हैं, उग्र रूप में और नम्र रूप में। अपने उग्र रूप में बुद्धिपरतावाद ने भावनानों
११६ / नीतिशास्त्र
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org