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सामान्य निरीक्षण (क) विभिन्न नैतिक सिद्धान्त नैतिक पादर्श-नीतिशास्त्र इस तथ्य पर आधारित है कि मनुष्य के कर्म आत्मनिर्णीत होते हैं। उसका आचरण साभिप्राय होता है। बौद्धिक होने के नाते वह जानना चाहता है कि किस परम ध्येय के लिए अपने जीवन को संचालित करे। अथवा नैतिक आदर्श क्या है ? जीवन की पूर्णता किस पर निर्भर है ? आत्म-सन्तोष कैसे प्राप्त हो सकता है ? उस सर्वश्रेष्ठ शुभ का क्या स्वरूप है जो कि मानवीय गौरव का प्रतीक है ? मनुष्य किसी भी नियम या आदेश का-चाहे वह आत्म-आरोपित हो या बाह्य-आरोपित–यान्त्रिक रूप से पालन नहीं कर सकता। वह उसका अर्थ समझना चाहता है। नियमों और आदेशों को व्यावहारिक रूप देने में उसे कई प्रकार की कठिनाइयाँ उठानी पड़ती हैं। विरोधों का सामना करना पड़ता है। नियमों में भी आत्मविरोष मिलता है। ऐसी असहाय अवस्था में वह एक परम मापदण्ड की खोज करता है। उस आदर्श को जानना चाहता है जिसके लिए नियम साधनमात्र हैं, जिसके द्वारा परस्परविरोधी नियमों की आत्मा तक पहुंचा जा सके। . विवाद का केन्द्र : व्यक्ति का स्वभाव-यदि नैतिकता के इतिहास का अध्ययन करें तो मालूम होगा कि नैतिक चिन्तन के शैशवकाल से ही परम आदर्श के स्वरूप के बारे में दो विरोधी धारणाएं चली आ रही हैं । नीतिज्ञों ने मनुष्यस्वभाव को बुद्धि और भावना की सामंजस्यपूर्ण इकाई न लेकर दो योद्धामों का युद्ध-क्षेत्र मान लिया है। एक मत के अनुसार मनुष्य का मूल रूप भावनात्मक
सामान्य निरीक्षण | ११५
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