________________
कोई ऐसी सम्भावना सदैव रहती है जिसके आधार पर व्यक्ति अपने अभी के उचित-अनुचित के निर्णय के अनुसार कर्म कर सकता है, चाहे उसके पूर्व के कर्म और अनुभव कुछ भी क्यों न हों ?
व्यक्ति के आचरण का अध्ययन यह बतलाता है कि व्यक्ति सदैव जिस प्रकार कर्म करता है वह एक विशिष्ट नियम के अनुरूप होता है। यह नियम उसके चरित्र का नियम है और चरित्र उसके जन्मजात मानसिक संस्कारों, वंशानुगत-गुणों तथा परिस्थिति का परिणाम है। साथ ही यह भी सच है कि उसके चरित्र को पूर्ण रूप से समझना असम्भव है। चरित्र का निर्माण करने वाले तत्त्व अत्यन्त जटिल होते हैं। उनकी सफलतापूर्वक गणना करना सैद्धान्तिक रूप से सम्भव होने पर भी वास्तव में असम्भव है । अतः प्रेरणा द्वारा निर्धारित कर्मों को प्राकृतिक घटना की भांति समझने का प्रयास करना मूर्खता है। नैतिक कर्म यह भी बताता है कि संकल्प-शक्ति की स्वतन्त्रता इस पर निर्भर नहीं है कि कर्म प्रेरणाहीन हैं, किन्तु इस पर है कि वे प्रेरणा द्वारा निर्धारित हैं। प्रेरणा नैतिक प्राणी के स्वरूप को अभिव्यक्ति देती है। मनुष्य का चरित्र सहज प्रवृत्तियों और आवेगों का अस्थिर समुद्र नहीं है। उसके कर्म स्वयं उसे तथा उसके सम्पर्क में आनेवालों को चमत्कृत नहीं करते हैं। वे प्रात्म-निर्णीत होते हैं; उसके चरित्र के अनुरूप होते हैं। नैतिक जीवन के लिए दृढ़-चरित्र का निर्माण आवश्यक है और चरित्र विशेष अभ्यासों से निर्मित जगत् की अपेक्षा रखता है। शुभ-चरित्र शुभ-अभ्यासों का संगतिपूर्ण विधान है। मनुष्य की संकल्प-शक्ति में एकरूपता मिलती है। उसके निश्चय उसके चरित्र से समानता रखते हैं। उसके कर्मों के बारे में कुछ सीमा तक निश्चित रूप से कहा जा सकता है । इस अर्थ में नीतिशास्त्र नियतिवाद को मानता है । यदि नियतिवाद अभ्यासों की समानता का सूचक है तो वह आवश्यक है । यह समानता नैतिक जीवन के लिए आवश्यक है। नैतिक प्राणी हर क्षण गिरगिट की भाँति रूप नहीं बदलता है। उसका व्यक्तित्व प्रात्म-निर्धारित है। उसका जीवन नियमबद्ध है । उसकी संकल्प-शक्ति नियम के अनुरूप कर्म करती है। इसके प्राचरण में एकरूपता और व्यवस्था मिलती है । उसके प्राचरण का नैतिक रूप से समान होना अनिवार्य है। वह विवेक और बुद्धि द्वारा परिचालित है, न कि क्षणिक आवेग द्वारा।
नैतिक प्रामी माध्यात्मिक प्राणी है। वह प्रात्मोन्नति के लिए प्रयास करता है । संस्कृति और सभ्यता का उपासक है। उसका नैतिक ज्ञान उसे बताता है
संकल्प-शक्ति की स्वतन्त्रता | ६५
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org