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'निर्णीत हैं। वह अपने कर्मों को अपना कहता है । शुभ-कर्म करने पर उसे प्रात्मसन्तोष होता है एवं अशुभ-कर्म करने पर ग्लानि और पश्चात्ताप । वह कहता है, 'मुझं ऐसा नहीं करना चाहिए' और भविष्य के लिए दृढ़ संकल्प करता है। उस संकल्प का उसके जीवन में मूल्य है। किन्तु नियतिवादियों के अनुसार पश्चात्ताप तथा दृढ संकल्प के लिए मानव-जीवन में कोई स्थान नहीं है । आत्मोन्नति, चरित्र का उत्थान, पतन और धार्मिक परिवर्तन आदि सब खोखली बातें हैं। . किसी भी व्यक्ति का चरित्र उसके भूत और वर्तमान आचरण द्वारा पूर्ण रूप से व्यक्त नहीं होता है। उसमें अनेक अविकसित सम्भावनाएँ हैं, अघटित घटनाएँ हैं। ज्ञान की वृद्धि और अनुभव की व्यापकता तथा तीव्रता उसका पूर्ण रूप से रूपान्तर कर देती हैं। एक मनुष्य का स्वभाव ऐसा भी हो सकता है कि वह निन्यानवे बार तक विशेष उत्तेजना पाकर एक ही तरह का आचरण करेगा और सौवीं बार दूसरी तरह का । मनुष्य स्वभाव का अध्ययन यह भली-- भाँति बता देता है कि किसी दढ़ व्यक्तित्व के मनुष्य के बारे में भी विश्वासपूर्वक यह नहीं कहा जा सकता कि किसी विशेष परिस्थिति में उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी। नियतिवादियों ने यह कहकर बड़ी भूल की कि मनुष्य के कर्म पूर्वपरिस्थितियों से उसी प्रकार प्रभावित होते हैं जिस प्रकार भौतिक जगत की घटनाएँ । उन्होंने नैतिक उत्तरदायित्व, नैतिक आदेश का ही नहीं, नैतिकता का भी निराकरण कर दिया। नैतिक मनुष्य मात्र इच्छाओं तथा परिस्थितियों का प्राणी नहीं है । वह अपने विश्व का निर्माता भी है । उसके नैतिक, बौद्धिक विकास के साथ उसकी इच्छाओं और इच्छित वस्तुओं का स्वरूप बदल जाता है । वह अपने इच्छित कर्मों के लिए उत्तरदायी है। ___अनियतिवादियों के अनुसार मनुष्य की संकल्प-शक्ति उस शैतान की भाँति है जो मनुष्य के संघटित व्यक्तित्व तथा चरित्र की स्थिरता की उपेक्षा करता है और अचानक किसी अनजाने पथ से पाकर अपना काम पूरा कर जाता है। ऐसी संकल्प-शक्ति की सृष्टि प्रत्येक क्षण में नवीन है। ऐसे अनजाने कर्म का कर्ता होते हुए भी व्यक्ति उस कर्म को अपनाने में कठिनाई प्रतीत करता है । उसमें उसे अपने अविच्छिन्न व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब नहीं मिलता। वह कह सकता है कि यह कर्म उसके कर्म करने के पूर्व तक के चरित्र का सूचक, उसके चिन्तन-मनन का पमिणाम नहीं है। उसका कर्म उस संकल्प-शक्ति द्वारा किया गया है जिस पर उसके चरित्र और इच्छाओं का अधिकार नहीं है। ऐसे
संकल्प-शक्ति की स्वतन्त्रता / ६३
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