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कर्म का सम्बन्ध जीवन के किसी एक अंग से नहीं, बल्कि सम्पूर्ण जीवन से है।
आचरण का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण-पशु और मनुष्य के कर्मों में भेदयदि पशुओं के जीवन की ओर ध्यान दें तो हमें मालूम होगा कि वे अपने कर्मों में सहजप्रवृत्तियों और अन्धप्रवृत्तियों से प्रेरित हैं। उनके कर्म भावना से संचालित होते हैं, किन्तु मनुष्य के कर्म उनसे भिन्न हैं। मनुष्य में भी अनेक प्रवृत्तियाँ और आवेग होते हैं। उसके इच्छित कर्म में स्रोत के रूप में आवेग वर्तमान रहता है। किन्तु बौद्धिक होने के कारण वह 'आगे-पीछे' की बात भी सोचता है। वह अपने आवेगों और प्रवृत्तियों का स्वामी है। वह अपनी संवेदनाओं और आवेगों के जीवन में ध्येय का निर्माण करता है। वह अपने अनुभवों और प्रवृत्तियों के अर्थ समझता है । पशु बाह्य प्रभावों से अपने को मुक्त नहीं कर सकता, किन्तु मनुष्य बाह्य प्रभावों तथा आन्तरिक आवेगों का आलोचनात्मक अध्ययन करके अपने कर्मों को बौद्धिक चेतना से निर्धारित कर सकता है । इस अर्थ में उसके कर्म आत्मनिर्णीत हैं।
निर्णीत कर्म के निर्माणात्मक अंग-निर्णीत अथवा स्वेच्छाकृत कर्म के चार निर्माणात्मक अंग हैं; भावना, इच्छा, विवेचन और निर्णय । उपयुक्त अंगों को समझने के लिए यदि हम यह उदाहरण लें कि परीक्षा का विचार आते ही विद्यार्थी खेलना छोड़कर पढ़ने बैठ जाता है तो यह निर्णीत कर्म कहलायेगा। निर्णीत कर्म सचेत कर्म है। कर्ता परिस्थिति-विशेष के बारे में पूर्ण रूप से जागरूक रहता है। परीक्षा का विचार विद्यार्थी के मन में खेलने के प्रति विरक्ति उत्पन्न कर देता है। उसमें अतृप्ति की भावना उत्पन्न होती है। भावना परिस्थिति के परिणामस्वरूप सुख और दुःख की सूचक है। प्रत्येक सचेत कर्म में भावना का स्तर रहता है। विद्यार्थी को खेलते समय उदासीनता अनुभव होती है। यह आवश्यकता या प्रभाव की भावना उसमें इस इच्छा को उत्पन्न करती है, 'मुझे पढ़ना चाहिए'। अथवा भावना में सदैव इच्छा निहित रहती है। अभाव की भावना के साथ ही इस अभाव, अशान्ति को दूर करने की इच्छा उत्पन्न होती है । इच्छा भावना का ही सक्रिय रूप है। साथ ही यह भी सत्य है कि इच्छा के साथ मनुष्य की अभिरुचि का भी सम्बन्ध है। यदि विद्यार्थी की रुचि पढ़ने में नहीं है तो उसके मन में कोई अन्य इच्छा बलवती हो उठेगी। ___ इच्छा का महत्त्व--मनुष्य की इच्छा सदैव किसी विशिष्ट ध्येय या लक्ष्य की ओर संकेत करती है । मनुष्य इस ध्येय के बारे में सचेत होता है। व्यक्ति
६६ / नीतिशास्त्र
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