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हमारे सम्मुख पायेगा जो कि मूर्त और व्यावहारिक रूप प्राप्त नहीं कर सकती। ऐसी स्थिति में नीतिशास्त्र को अस्तित्वहीन मान लेना अनुचित न होगा। इस सत्य को सम्मुख रखते हुए ही काण्ट ने कहा कि संकल्प-शक्ति की स्वतन्त्रता नैतिकता की आवश्यक मान्यता है । स्वतन्त्र प्राणी अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी है। इस तथ्य का स्पष्टीकरण करने के लिए आवश्यक है कि पहले दोनों सिद्धान्तों -नियतिवाद और अनियतिवाद-को समझ लें।
नियतिवाद-नियतिवादियों के अनुसार मनुष्य की संकल्प-शक्ति स्वतन्त्र नहीं है, पूर्व-निर्धारित है। उनका कहना है कि निर्णीत कर्म में संकल्प-शक्ति प्रेरणा के साथ समीकरण करती है और प्रेरणा का स्वरूप व्यक्ति के चरित्र पर निर्भर है। अतः यदि व्यक्ति के चरित्र का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लें तो उसके भविष्य के आचरण के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है। यह पहले से ही बताया जा सकता है कि उसके कर्मों की रूप-रेखा कैसी होगी। उसकी संकल्पशक्ति का बाह्य रूप क्या होगा। जन्म के समय से ही मनुष्य का अन्त:संस्कार सामाजिक और भौतिक परिस्थितियों से प्रभावित होता रहता है। चरित्र का उत्थान और पतन उन परिस्थितियों के आधार पर ही होता है। उन परिस्थितियों के ज्ञान के द्वारा उसके चरित्र का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। चरित्र का ज्ञान प्राप्त करना ही उसके वर्तमान और भविष्य के कर्मों को समझना है। व्यक्ति के कर्म सदैव उसके कर्म करते समय तक के निर्धारित चरित्र के अनुरूप होते हैं । उसका चरित्र बाह्य परिस्थितियों, वंशानुगत गुणों, मौलिक स्वभाव तथा परिवेश का योग है। उन्हीं के द्वारा उसका चरित्र निश्चित स्वरूप ग्रहण करता है। मनुष्य के कर्म उसके मौलिक स्वभाव, वंशपरम्परा और परिस्थिति का अनिवार्य परिणाम होते हैं । इस प्रकार उसके कर्म पूर्व निश्चित होते हैं । इस आधार पर नियतिवादी कहते हैं कि यदि किसी व्यक्ति के विगत जीवन को भली-भांति समझ लिया जाये तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि उसके कर्म कैसे होंगे। किसी भी व्यक्ति के मौलिक स्वभाव, परिवार, परिस्थिति, शिक्षा और वातावरण प्रादि का पर्याप्त ज्ञान उसके भावी आचरण को स्पष्ट रूप से प्रतिविम्बित कर सकता है। वह यहां तक कहते हैं कि यदि दो व्यक्तियों का मौलिक स्वभाव और वातावरण बिलकुल एक-सा हो तो उनके कर्म निश्चित रूप से समान होंगे, भिन्न नहीं हो सकते । इस तथ्य को समझाने के लिए वे उदाहरण देते हैं कि, यदि ऐसे दो जुड़वाँ भाइयों को लें जिनके अन्तःसंस्कारों या मूलगत प्रवृत्तियों में पूर्ण रूप से समानता हो और जन्म से ही उनका लालन
८८ / नीतिशास्त्र
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