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संकल्प-शक्ति की स्वतन्त्रता
स्वतन्त्र संकल्प-शक्ति-प्रावश्यक नैतिक मान्यता-अभी तक यह मानते आये हैं कि मनुष्य के कर्म आत्म-निर्धारित हैं। उसकी संकल्प-शक्ति स्वतन्त्र है। वह अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी है । उसके कर्म नैतिक निर्णय का विषय हैं । इस अर्थ में संकल्प-शक्ति की स्वतन्त्रता आवश्यक नतिक मान्यता है । ऐतिहासिक दृष्टि से संकल्प अथवा संकल्प-शक्ति के बारे में दो परम विरोधी सिद्धान्त मिलते हैं : नियतिवाद (Determinism) या अस्वच्छन्दतावाद (Anti-Libertarianism) और अनियतिवाद (Indeterminism) या स्वच्छन्दतावाद (Libertarianism)। इन दोनों मतों का पालोचनात्मक अध्ययन यह बतायेगा कि इन मतावलम्बियों ने एकांगी दृष्टिकोण को सम्मुख रखा । नियतिवाद और अनियतिवाद दोनों को ही समान रूप से अनिवार्य मानते हुए तीसरे प्रकार के विचारक नैतिक कर्मों को आत्म-निर्णीत मानते हैं। इन्हीं का नैतिक दृष्टि से मूल्यांकन कर सकते हैं । यदि इसके विपरीत यह मान लें कि मनुष्य के कर्म आत्म-निर्णीत नहीं हैं, संकल्प-शक्ति स्वतन्त्र नहीं है, तो नैतिक प्रादेश और नैतिक मान्यताएं अर्थशून्य हो जायेंगी। नैतिक दृष्टि से जब यह कहते हैं कि 'तुम्हें यह करना चाहिए', 'यह कर्म उचित है', 'यह पाप है', आदि, तो इसके अर्थ यही होते हैं कि तुम इस कर्म को करने के लिए स्वतन्त्र हो, यदि तुम चाहो तो तुम्हारी कर्म-शक्ति उचित मार्ग को ग्रहण कर सकती है । संकल्प-शक्ति की स्वतन्त्रता को बिना माने 'नैतिक चाहिए' पागल का प्रलाप है। नैतिक आदर्श की प्राप्ति व्यक्ति के लिए उतनी ही असम्भव हो जायेगी जितना कि किसी अन्धे के लिए सुन्दर दृश्य देखना । अथवा नैतिक आदर्श उस सुन्दर कल्पना की.भौति
संकल्प-शक्ति की स्वतन्त्रता | ८७
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