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या चरित्र अथवा चित्तवृत्तियों का विज्ञान भी कहा गया है ।
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नीतिशास्त्र और मनोविज्ञान दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध होते हुए भी अन्तर है । नीतिशास्त्र का क्षेत्र अधिक व्यापक है । वह वास्तविक मानसिक घटनाओं के आगे उस भविष्य को समझना चाहता है जो कि मानवीय गौरव का प्रतीक है । वह यथार्थ घटनाओं को समझकर तत्त्वदर्शन की सहायता से आदर्श का निर्माण करता है । मनोविज्ञान इसे केवल स्वेच्छाकृत कर्मों और उनके स्रोत के बारे में बताता है; नैतिक मान्यताओं और निर्णयों का वास्तविक घटनाओं की भाँति अध्ययन करता है । नीतिशास्त्र मनुष्य के प्रात्मिक सत्य और उसके तात्त्विक स्वरूप को भी समझने का प्रयास करता है । वह मनश्चेतना के वास्तविक और दृष्टिगोचर रूप तक ही अपने को सीमित नहीं रखता । मानव-प्रांत्मा के पूर्ण रूप को समझने के लिए प्रयोगशाला पर्याप्त नहीं है । नीतिशास्त्र आदर्शविधायक विज्ञान है । वह व्यावहारिक और विधि - निषेधात्मक है । मनोविज्ञान यथार्थ विज्ञान है | यह मानसिक घटनाओं का तथ्यात्मक अध्ययन तथा मानवचरित्र का विश्लेषण करता है और इस अर्थ में यह सैद्धान्तिक है । नीतिशास्त्र आचरण के औचित्य और अनौचित्य के मापदण्ड को निर्धारित करता है । मनोविज्ञान का सम्बन्ध 'क्या है' से है और नीतिशास्त्र का सम्बन्ध 'क्या होना चाहिए' से है | क्या होना चाहिए को निर्धारित करने के लिए ही वह मनोविज्ञान के आगे दर्शन के क्षेत्र में प्रवेश करता है । मानसिक तथ्यों के ज्ञान के आधार पर वह नैतिक आदर्श की प्राप्ति के लिए साधन जुटाता है । नैतिक तथ्य मानसिक अवश्य है । किन्तु इसके अर्थ यह नहीं हैं कि नीतिशास्त्र मनोविज्ञान पर आधारित है । श्राचरण का तथ्यात्मक ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् वह आचरण के आदर्श का प्रतिपादन करता है । नीतिशास्त्र और मनोविज्ञान दोनों ही मानव चेतना को दो भिन्न दृष्टिकोण से देखते हैं । मनोवैज्ञानिक वैज्ञानिक की भाँति मानव चेतना की विभिन्न स्थितियों का विश्लेषण करता है और नीतिज्ञ कला के प्रालोचक की भाँति उसका मूल्यांकन करता है । नैतिक निर्णय का विषय : आचरण - नैतिक दृष्टि वैज्ञानिक की दृष्टि से भिन्न है । यथार्थ विज्ञान की भाँति यह मानसिक घटनाओं तक ही अपने को सीमित नहीं रखती है बल्कि उनके औचित्य - अनौचित्य को निर्धारित करती है । नैतिक निर्णय का विषय मनुष्य का आचरण है । नैतिक निर्णय आत्मचेतन प्राणी के स्वेच्छाकृत कर्मों पर ही दिया जाता है । वह प्राकृतिक घटनाओं, अप्रबुद्ध लोगों, पागलों तथा बच्चों के कर्मों पर नहीं दिया जाता है । उन्हीं कर्मों
६४ / नीतिशास्त्र
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