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पर नैतिक निर्णय दिया जा सकता है जिनके लिए कर्ता उत्तरदायी है, जिन्हें कि वह समझ-बूझकर स्वेच्छा से करता है । स्वेच्छा से किये हुए कर्मों का क्या रूप है, नैतिक निर्णय वस्तुतः किस पर देते हैं ? इन प्रश्नों का उत्तर यह है कि नैतिक निर्णय आचरण पर देते हैं; और आचरण को ही मनोवैज्ञानिक परिभाषा में स्वेच्छाकृत एवं इच्छित कर्म (Willed-action) कहते हैं।
दो प्रकार के कर्म-इच्छित और अनिच्छित-इच्छित कर्म को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से समझने के पूर्व उसकी अन्य कर्मों से तुलना कर लेना उचित होगा। मनुष्य के कर्म दो प्रकार के होते हैं; इच्छित और अनिच्छित । अनिच्छित कर्म नैतिक गुण से हीन हैं। उनके अन्तर्गत उत्क्षिप्त, सहजप्रेरित आवेगपूर्ण, अप्रबुद्ध आदि कर्म आते हैं । ये कर्म स्वतःजात होते हैं । आकस्मिक आवेग के कारण व्यक्ति उन्हें करता है। स्वतःजात और आकस्मिक होने के कारण अनिच्छित कर्म अपने किसी भी रूप में नैतिक निर्णय का विषय नहीं हो सकते । उनके लिए कर्ता को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। इच्छित कर्म वे हैं जिन्हें कि कर्ता स्वतन्त्रतापूर्वक अपने विवेक से परिचालित करता है। उन कर्मों को आत्म-निर्णीत (Self-determined) या बौद्धिक कर्म भी कहते हैं । कर्ता इन कर्मों के लिए उत्तरदायी है। ये नैतिक निर्णय के क्षेत्र के अन्दर आते हैं।
अभ्यासगत कर्म भी इच्छित हैं-ध्यान देने की बात है कि अभ्यासगत कर्मों पर भी नैतिक निर्णय देते हैं। यह कहा जा सकता है कि अभ्यासगत कर्म अनिच्छाप्रेरित और दुनिवार (Irresistible) होते हैं । किन्तु मनोविज्ञान का कहना है कि केवल स्थूल दृष्टि से हीन्प्रभ्यासगत कर्मों को अनिच्छाप्रेरित कह सकते हैं। मानसिक और शारीरिक अभ्यासों का अनुशीलन करने से प्रतीत होगा कि प्रारम्भ में वे स्वेच्छाप्रेरित कर्म होते हैं और समय के साथ दुहराये जाने से वे अभ्यास बन जाते हैं। अतः बुरे अभ्यासोंवाला व्यक्ति अथवा दुःशील व्यक्ति अपने आचरण के लिए उत्तरदायी है। उसे प्रारम्भ में ही अपने अभ्यासों में सुधार अथवा परिवर्तन कर लेना चाहिए। यह सत्य है कि धीरे-धीरे अभ्यास मनुष्य के स्वभाव का अंग बन जाते हैं। किन्तु मनुष्य का कर्तव्य है कि वह दृढ़ निश्चय और मनःशक्ति द्वारा बुरे अभ्यासों को छोड़ दे या उनका उन्नयन कर ले । मनुष्य को अपने जीवन के हर क्षेत्र में, प्रत्येक कर्म में सुरुचि और सुथरेपन को अपनाना चाहिए। उसके जीवन में छोटे-से-छोटे कर्म का भी महत्त्व है, चाहे वह घास छीलना ही क्यों न हो। नैतिक ज्ञान बताता है कि निर्णीत
मनोवैज्ञानिक आधार तथा नैतिक निर्णय | ६५
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