________________
उचित होगा। कर्म के प्रौचित्य-अनौचित्य की समस्या ही नैतिक समस्या है। इस समस्या के मूल में स्वार्थ-परमार्थ, सहजप्रवृत्ति-न्याय, भावना कर्तव्य तथा विश्वास और औचित्य का विरोध एवं असमानता है।
यदि नैतिक चेतना सम्पन्न व्यक्ति समान रूप से बलवती इच्छाओं अथवा आत्महित और परिहित के द्वन्द्व में फंस जाता है तो उसे निष्पक्ष चिन्तन की आवश्यकता पड़ जाती है। वह देखता है कि एक सृजन व्यक्ति-विशेष के विरुद्ध कहने मात्र से वह अपने नंगे-भूखे बच्चों, परिवार एवं प्रात्मीयों को सुख-समृद्धि और उचित शिक्षा में सहायक होगा तो उसके सामने एक और अनेक तथा अपने और पराये का प्रश्न उठेगा। नैतिक आचरण औचित्य और न्याय का आचरण है, अतः भावना या दया से संचालित नहीं होता। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ऐसे द्वन्द्वों की विभिन्न परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। प्रश्न यह है कि सदाचार का इच्छुक व्यक्ति अपने मार्ग को कैसे निर्धारित करे । क्या प्रत्येक द्वन्द्व की स्थिति में वह नैतिक नियमों की संहिता देखे ? यदि हां तो क्या ऐसी संहिता सम्भव एवं उपलब्ध है ? नैतिक नियम निश्चित और अपरिवर्तनशील नहीं हैं । वे देश, काल और परिस्थिति से विमुख नहीं हो सकते। नैतिक कर्म परम ध्येय के लिए साधनमात्र हैं। अत: विवेकी व्यक्ति का कर्तव्य हो जाता है कि वह नियमों का अन्धानुकरण न करे बल्कि देशकाल और परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए ध्येय की प्राप्ति के लिए प्रयास करे।
कर्म के औचित्य को निर्धारित करने के लिए, मानसिक संघर्ष की स्थिति में, व्यक्ति को पक्षान्तरों एवं विकल्पों के पक्ष-विपक्ष को समझने का प्रयास करना पड़ता है । वह सब प्रकार के सम्भाव्य परिणामों को अपने सम्मुख रखता है। उनका तुलनात्मक परीक्षण और युक्तिसंगत विवेचन करता है। उन परिस्थितियों के साथ काल्पनिक तादात्म्य अनुभव करके उन्हें अपनी नैतिक अन्तर्दृष्टि द्वारा भली-भाँति समझ लेना चाहता है । वह यह भी जानना चाहता है कि किसी विशिष्ट विकल्प को स्वीकार करके, उसके अनुरूप कर्म करने से वह दूसरों की स्थिति को कहाँ तक प्रभावित करेगा। वह अपने आचरण द्वारा दूसरों की नैतिक हानि तो नहीं करेगा। अपने सम्मुख व्यापक दृष्टिकोण रखकर वह विकल्पों में निहित मान्यताओं का मूल्यांकन करेगा। वह साध्य और साधन को समझना चाहता है। उसके लिए आवश्यक है कि उसका ध्येय और उसे प्राप्त करने के उपाय दोनों ही शुभ हों। वह यदि किसी निर्धन को धन देना चाहता है तो इस धन को वह किसी अमीर का गला काटकर नहीं लायेगा।
. मनोवैज्ञानिक प्राधार तथा नैतिक निर्णय | ६६
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org