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हैं । जिस मान-दण्ड से हम ध्येय को शुभ कहते हैं उसी मान-दण्ड से हम कर्ता को सद्गुणी और कर्म को उचित कहते हैं। उदाहरणार्थ, उपयोगितावाद के अनुसार अधिकतम संख्या के लिए अधिकतम सुख ही परम-ध्येय है। यही नैतिक निर्णय का मानदण्ड है। इसके अनुरूप कर्म, चरित्र और ध्येय को ही नैतिक अनुमोदन के योग्य मानना चाहिए।
कर्तव्य, अधिकार : सामान्य प्रर्थ-मनुष्य का सामान्य जीवन कर्तव्य और अधिकार के बीच व्यतीत होता है । वह समाज का अनिवार्य अंग और देश का नागरिक है। समाज अपने सदस्य को मौलिक अधिकार प्रदान करता है ताकि वह भली-भाँति अपने जीवन की विविधांगी आवश्यकतानों की पूर्ति कर सके। 'किन्तु अधिकार बिना कर्तव्य के अधुरा और अर्थशून्य है। यदि किसी व्यक्ति को अपनी सम्पत्ति रखने का अधिकार है तो उसका कर्तव्य हो जाता है कि वह दूसरे की सम्पत्ति का अपहरण न करे। प्रत्येक नागरिक के सुव्यवस्थित जीवन की रक्षा करने के लिए ही समाज और राजसत्ता कर्तव्य और अधिकार की 'रूपरेखा बनाती है और उसे लोगों पर आरोपित करती है। - नैतिक अर्थ-नैतिकता, कर्तव्य और अधिकार को मानते हुए, उन्हें एक उच्च मान्यता प्रदान करती है। वह कर्तव्य को महत्त्व देते हुए कहती है कि बौद्धिक प्राणी का यह जन्म-जात अधिकार है कि वह अपने नैतिक और आध्यात्मिक अधिकारों की मांग कर सकता है। वह अधिकार शक्ति-प्रदर्शन, भोग-विलास, यश-लालसा तथा धन की तृष्णा का नहीं है अपितु आत्मिक उन्नति का है। आत्मिक उन्नति मानव-जाति की उन्नति की अपेक्षा रखती है। अत: व्यक्ति को अपने अधिकार के साथ ही दूसरों के प्रति जागरूक रहना चाहिए। ___ अंग्रेजी का 'राइट' शब्द द्वयर्थक है । वह भिन्न सन्दर्भो के अनुरूप औचित्य और अधिकार का सूचक है। समाज में संस्कृत और सभ्य कहलाने के लिए शिष्टाचार के नियमों का पालन करना नैतिकता नहीं है और न दण्ड से बचने के लिए राज्य के नियमों के अनुरूप कर्म करना नैतिक कर्म करना है। मनुष्य नैतिक प्राणी है और नैतिक नियम अान्तरिक नियम है। जब किसी कर्म को लोक-व्यवहार के कारण नहीं बल्कि उसकी आन्तरिक श्रेष्ठता के कारण अपनाते हैं तो वह उचित कर्म कहलाता है। समझ-बूझकर सदाचार को अपनाना ही
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Right.
७६ / नीतिशास्त्र
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