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अपने उन्नत चरित्र को अभिव्यक्ति देता है । जब व्यक्ति नैतिक ध्येय को समझकर भी उसके विपरीत कर्म करता है तो वह पाप करता है। ऐसा कर्म उसके चरित्र के पतन का सूचक है। पाप और पुण्य का सम्बन्ध व्यक्ति से है, अतः इनमें गुणात्मक भेद दीखता है। चरित्र की नैतिक पूर्णता मुणात्मक अन्तर की अपेक्षा रखती है। व्यक्ति के चरित्र का उत्थान और पतन समझाने के लिए कम पतन, अधिक पतन, अधिक श्रेष्ठ आदि वाक्यों का प्रयोग किया जाता है। चरित्र की अपूर्णता से पूर्णता तक में एक क्रमिक शृंखला मिलती है।
पाप और पुण्य चरित्र के सूचक हैं। इस कारण कुछ नीतिज्ञ संकल्प द्वारा इनके स्वरूप को समझाते हैं। यदि उचित मार्ग को पकड़ने के लिए आवेगों
और प्रवृत्तियों पर अत्यधिक नियन्त्रण रखना पड़े अथवा त्याग के लिए दृढ़ संकल्प की आवश्यकता हो तो चरित्र अत्यधिक श्रेष्ठ है। इन्द्रियों का दमन करने के लिए और इच्छाओं को सन्मार्ग दिखाने के लिए जितना अधिक प्रयास करना पड़े उतना ही अधिक पुण्य-चरित्र,होने का सूचक है। किन्तु ऐसा भेद एकांगी है। इसे सर्वसामान्य मानदण्ड नहीं मान सकते । वास्तव में उन्नत चरित्र में संकल्प और इच्छा के बीच द्वन्द्व या तो कम दीखेगा या दीखेगा ही नहीं। नैतिक दष्टि से जो व्यक्ति जितना ही कम विकसित होगा उसे उतना ही अधिक त्याग और प्रयास करना पड़ेगा। दो समान चरित्र के व्यक्तियों की श्रेष्ठता को इस आधार पर अवश्य आँका जा सकता है । पर सम्पूर्ण परिस्थिति का व्यापक और सूक्ष्म ज्ञान ही पाप-पुण्य के रूप को निर्धारित कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति मूर्खतावश ऐसी स्थिति में त्याग करता है जहाँ कि त्याग की आवश्यकता नहीं है तो उसका आचरण चरित्र की श्रेष्ठता का सूचक नहीं है । नैतिक दष्टि से हम उसे मूर्ख और अविवेकी कहेंगे। वही चरित्र श्रेष्ठ है जो समझ-बूझकर आवश्यकतानुसार सहर्ष पूर्ण त्याग करता है । - संकल्प-स्वातन्त्र्य' और उत्तरदायित्व-अभी तक जितने भी नैतिक प्रत्ययों का प्रयोग किया है उनके मूल में यह अनिवार्य मान्यता है कि संकल्प-शक्ति स्वतन्त्र है। बिना संकल्प-स्वातन्त्र्य को माने नैतिकता एवं नैतिक प्रत्यय अस्तित्व-शून्य हैं। संकल्प-स्वातन्त्र्य और उत्तरदायित्व सापेक्ष हैं। दोनों का
१. नैतिक जीवन में संकल्प-स्वातन्त्र्य का महत्त्वपूर्ण स्थान होने पर भी नीतिज्ञों में मतभेद
है । अत: इसका विस्तार से वर्णन करना आवश्यक है जिसकी पूर्ति अगले अध्याय में की गयी। संकल्प का स्वरूप उत्तरदायित्व के स्वरूप पर भी अधिक प्रकाश डालेगा।
८४ / नीतिशास्त्र
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