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खोज और दुःख से दुराव । प्रेरणा गुणहीन है । यह अपने-आपमें न तो अच्छी ही है और न बुरी ही । परिणाम के सन्दर्भ में ही इसे अच्छा या बुरा कह सकते हैं । सुखवादियों के अनुसार प्रेरणा भावनामात्र है । इसमें कोई सन्देह नहीं कि कई बार मनुष्य भावनावश कर्म करते हैं । किन्तु नैतिक निर्णय उस आचरण पर दिया जाता है जो कि साभिप्राय कर्म है । साभिप्राय कर्म का परम कारण भावना नहीं है । मनोविज्ञान बताता है कि भावना निर्णीत कर्म का अनिवार्य अंग है । इसे कर्म का निमित्त कारण कह सकते हैं किन्तु परम-कारण नहीं । यह निर्णीत कर्म का अंग होते हुए भी व्यक्ति को पूर्ण रूप से कर्म करने के लिए प्रेरित नहीं कर सकती । भावना और इच्छित ध्येय की धारणा मिलकर ही व्यक्ति को कर्म करने के लिए प्रेरित करती हैं । अतः भावना को कार्य का प्रेरक नहीं कह सकते। यह कर्म का स्रोत नहीं है । अथवा प्रेरणा भावनामात्र नहीं है । यह वह प्रबल इच्छा है जो कि कर्म की प्रवर्तक है, या जिसके लिए कर्म किया जाता है । माँ-बाप के सम्मुख उनके बच्चे का हित है । बच्चे का हित वह प्रबल इच्छा या प्रेरणा है जो कि उन्हें प्रेरित करती है कि बच्चे की बुरी प्रादतों को छुड़ाने के लिए उसे दण्डित करें । यहाँ पर प्रेरणा बच्चे का हित है | प्रेरणा का सम्बन्ध प्रत्यक्ष ध्येय से है । प्रेरणा वह है जिसके लिए कि व्यक्ति कर्म करता है, जिसे वह चुनता है। प्रेरणा इस अर्थ में कर्म का परम कारण है, कर्म का प्रान्तरिक स्रोत है । यहाँ पर काण्ट और बटलर का कहना है कि कर्म का प्रौचित्य अनौचित्य प्रेरणा पर निर्भर है । परिणाम से नैतिकता का कोई सम्बन्ध नहीं है । यदि प्रेरणा पवित्र है तो कर्म पवित्र है । संक्षेप में एक मत के अनुसार प्रेरणा द्वारा ही कर्म के औचित्य को निर्धारित कर सकते हैं और दूसरे के अनुसार परिणाम द्वारा ।
उद्देश्य - परिणाम को महत्त्व देते हुए बेंथम ने कहा कि कर्म के औचित्य को समझने के लिए उद्देश्य ( intention) को समझना चाहिए । उद्देश्य का क्षेत्र प्रेरणा से अधिक व्यापक है । प्रेरणा वह है जिसके लिए कर्म किया जाता है किन्तु उद्देश्य केवल वह नहीं है जिसके लिए कर्म किया जाता है । किन्तु वह भी है जिसमें परिणाम को समझ-बूझकर कर्म किया जाता है । इसमें सब प्रकार की सम्भावनाएँ सोच ली जाती हैं । यदि बच्चे और माँ-बाप वाला ही उदाहरण लें तो मालूम होगा कि माँ-बाप यह भली-भाँति जानते थे कि बच्चे को सुधारने के लिए उसे दण्डित करना पड़ेगा । उद्देश्य के अन्तर्गत प्रेरणा और परिणाम दोनों ही आते हैं । किन्तु प्रेरणा के अन्तर्गत उद्देश्य नहीं आता है ।
मनोवैज्ञानिक आधार तथा नैतिक निर्णय / ७१
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