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नीतिशास्त्र का मनोवैज्ञानिक आधार तथा
नेतिक निर्णय का विषय
मनोवैज्ञानिक ज्ञान की आवश्यकता-मनोविज्ञान मनुष्य को वास्तविक स्थिति तथा क्रियाकलाप का ज्ञान देता है । यह मानव-मन का विज्ञान है । नीतिशास्त्र और मनोविज्ञान को असम्बद्ध नहीं मानना चाहिए। नैतिक सिद्धान्त की सार्थकता और पूर्णता को समझने के लिए मनुष्य के मानस का ज्ञान अनिवार्य है । आदर्शविधायक विज्ञान होने के कारण नीतिशास्त्र मनुष्य के नैतिक जीवन का तथ्यात्मक अध्ययन करता है । नीतिशास्त्र का सम्बन्ध मानव-चेतना से है । मनुष्य आत्मप्रबुद्ध चेतन प्राणी है। उसके जीवन में कर्तव्य और अधिकार अपनी विशेष सार्थकता रखते हैं। उसके कर्मों के सम्मुख औचित्य और अनौचित्य का प्रश्न उठता है । किन्तु इस प्रकार के विवेचन मनुष्य के मानसिक विकास के सूचक हैं । अबोध बालक, पागल, अपसामान्य, निर्बुद्धि, मूढ़ और अल्पमति व्यक्तियों तथा जंगली मनुष्यों के आचरण पर नैतिक निर्णय अर्थशून्य है। मनुष्य के लिए वांछनीय जीवन क्या है ? उसकी स्वाभाविक प्रकृतिजन्य विशिष्टता क्या है ? इन प्रश्नों का उत्तर देने के पूर्व यह आवश्यक है कि मनुष्य के स्वभाव और उसके निर्माणात्मक तत्त्वों को भली-भाँति समझ लें। __ मनोविज्ञान से सम्बन्ध-मनोविज्ञान मनुष्य के मानस तथा उसके व्यक्तित्व का अध्ययन करता है। वह बताता है कि ज्ञान, संकल्प और भावना कैसे कार्य करती हैं । मनुष्य स्वेच्छाकृत कर्मों को कैसे निर्धारित करता है । मन के निर्माणात्मक तत्त्व क्या हैं । कर्म की प्रेरणाशक्ति क्या है। मनुष्य अपने कर्मों में कहाँ
. मनोवैज्ञानिक आधार तथा नैतिक निर्णय | ६१
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