________________
नीतिशास्त्र की प्रणालियाँ
नीतिशास्त्र की प्रणालियाँ-नीतिशास्त्र का आदर्श-विधायक स्वरूप यह स्पष्ट कर देता है कि धरती पर पैर होने पर भी यह मात्र धरती का नहीं है। मानव-जीवन के आदर्श से सम्बन्धित होने के कारण एक ओर तो वह यथार्थ विज्ञानों से सम्बन्धित है और दूसरी ओर तत्त्वदर्शन से । अतः यह न तो मात्र वह विज्ञान है जो अनुभव पर आधारित है और न मात्र वह आदर्श है जो अनुभव से स्वतन्त्र एवं अनुभवातीत है। नैतिक सिद्धान्तों का अध्ययन बतलाता है कि नीतिज्ञ इस सत्य की ओर से तटस्थ-सा रहे। प्रत्येक नीतिज्ञ ने एक विशिष्ट प्रणाली को महत्त्व दिया और उसी प्रणाली को उसने स्वयं स्वीकार किया। इस भाँति हमें अनेक प्रणालियाँ मिलती हैं । सुकरात की प्रश्नोत्तर एवं शंका-समाधान की प्रणाली, स्पैंसर की विशुद्ध वैज्ञानिक प्रणाली, हीगल और ग्रीन की दार्शनिक प्रणाली, उपयोगितावादियों की मनोवैज्ञानिक एवं विश्लेषणात्मक प्रणाली, ग्रीन की मिश्रित प्रणाली आदि का अध्ययन यह बतलाता है कि नीतिज्ञों ने किसी एक प्रणाली को नहीं अपनाया है बल्कि विभिन्न प्रणालियों का आश्रय लिया है । स्थूल दृष्टि से जिन विभिन्न प्रणालियों को उन्होंने स्वीकार किया है उन्हें दो विधियों के अन्तर्गत समझा सकते हैं : दार्शनिक और वैज्ञानिक ।
१. वह पालोचनात्मक प्रणाली जो कि अपने प्रतिद्वन्द्वी के मत का खण्डन करके अपने मत का
प्रतिपादन करती है। २. सिजविक ने सिद्धान्त को ही विधि मानकर नीतिशास्त्र की सभी विधियों को तीन मुख्य
विधियों (स्वार्थवादी सुखवाद, सार्वभौम सुखवाद और सहजज्ञानवाद) के अन्तर्गत माना है। विधियों का इस प्रकार का वर्गीकरण अनुचित है क्योंकि सिद्धान्त पौर विधि में भेद
४४ / नीतिशास्त्र
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org