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व्यावहारिक होने के कारण इसके निष्कर्षों का सार्वभौमिक और तात्कालिक महत्त्व है। समाजशास्त्र सामाजिक स्वास्थ्य की वृद्धि एवं भौतिक सुख को सम्मुख रखते हुए लाभप्रद नियमों को महत्त्व देता है। किन्तु नीतिशास्त्र भौतिक सूख के उद्देश्य से लाभप्रद नियमों को अनैतिक कहता है। वह उच्चतम नैतिक ध्येय के लिए ऐहिक सुख की उपेक्षा करता है। नीतिशास्त्र भौतिक कल्याण से परे विश्व के नैतिक कल्याण की भी स्थापना करना चाहता है। यह कल्याण समाजशास्त्र की भाँति केवल सामाजिक ही नहीं, वैयक्तिक और सामाजिक दोनों है । समाजशास्त्र नैतिकता की विकसित स्थितियों अथवा विकासक्रम में विकसित नैतिक प्रगति के व्यक्त रूप को ही समझाता है। किन्तु नीतिशास्त्र उस परम आदर्श की खोज करता है जो कि सामाजिक संस्थाओं के औचित्यअनौचित्य को समझा सके ।
ईश्वर विद्या-ईश्वरविद्या सृष्टितत्त्व तथा सृष्टिकर्ता के बारे में बताती है। सृष्टि का सम्बन्ध वास्तविक दृश्यमान जगत से है । वह जगत जिसमें हम रहते, खाते और चलते हैं। इस जगत का निर्माण करनेवाला ईश्वर है। ईश्वरविद्या ईश्वर, प्रात्मा और सृष्टि के सम्बन्ध में प्रकाश डालती है। ईश्वर इस विश्व का स्रष्टा है । वह सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञाता, सर्वदर्शी, न्यायशील है। वह शुभ और सद्गुण की पूर्णता का प्रतीक है। सत्यशील एवं न्यायप्रिय होने के कारण उसने विश्व-विधान का संचालन अनिवार्य नैतिक नियमों द्वारा किया है। मनुष्य उसकी सृष्टि का उच्चतम प्राणी है। उसके पास स्वतन्त्र मनःशक्ति है। वह प्रात्मचेतन है। अतः वह सृष्टिकर्ता के प्रति अनुगृहीत है । उसको चाहिए कि वह ईश्वरीय शाश्वत नैतिक नियमों को समझे । उसका कर्तव्य है कि वह अपनी स्वतन्त्र बुद्धि तथा मन:शक्ति का सदुपयोग करे; भगवद्-इच्छा के अनुरूप कर्म करे।
ईश्वरविद्या अथवा अध्यात्म बताता है कि जीवन का ध्येय सार्वभौम शुभ है। प्रत्येक प्राणी के सुख के लिए प्रयास करना ही मनुष्य का कर्तव्य है। सत्तात्मक रूप से सब प्राणी समान हैं और सबका जनक ईश्वर है । सब प्राणी एक ही परिवार के बालक हैं। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' में भेद के लिए, तेरे-मेरे के लिए, स्थान नहीं है। भिन्नता या विभेद माया मात्र है, अर्थ-शून्य है। ईश्वर परमसत्य है। सृष्टि उसी का रूप है। इस प्रकार ईश्वरविद्या अहिंसा एवं विश्व-प्रेम की नींव डालता है। वह जीवन के ध्येय को सार्वभौम शुभ बताकर व्यक्ति को वैयक्तिक संकीर्णता से ऊपर उठाकर विश्वात्मा के दर्शन कराता है।
५४ / नीतिशास्त्र
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