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आमोसहि विप्पोसहि खेलोसहि जल्लओसही चेव । सव्वोसहि संभिन्ने ओही रिउ विउलमइलद्धी ॥१॥ चारण आसीवीस केवलि य गणहारिणो य पुव्वधरा । अरहंत चक्कवट्टी बलदेवा
य ||२||
खीर महुसपिआसव कोट्ठयबुद्धी पयाणुसारी य । तह बीयबुद्धि तेयग आहारग
सीयलेम्सा
य || ३ ||
अक्खीणमहाणसी एमाइ हुंति
वेव्विदेह लद्धी परिणामतववसेणं
पुलाया य । लडीओ ॥४॥
अर्थात् (१) आमर्पोषधिलब्धि, (२) विप्रौषधिलब्धि, (३) खेलौषधि, (४) जल्लोषधिलब्धि, (५) सर्वोषधिलब्धि, (६) संभिन्न श्रोतोलब्धि, (७) चारणलब्धि, (८) ऋजुमतिलब्धि, (६) विपुलमतिलब्धि, (१०) आशीविषलब्धि, (११) केवलीलब्धि, (१२) अवधिलब्धि, (१३) गणधरलब्धि, (१४) पूर्वधरलब्धि, (१५) अर्हत्लब्धि, (१६) चक्रवर्तीलब्धि, (१७) बलदेवलब्धि, (१८) वासुदेवलब्धि, (१६) क्षीरमधु विधि, (२०) कोष्टकलब्धि, (२१) पदानुसारीलब्धि, (२२) बीजलब्धि, (२३) तेजोलेश्यालब्धि, (२४) शीतल तेजोलेश्यालब्धि, (२५) आहारकलब्धि, (२६) वकुर्विकलब्धि, (२७) अक्षीण महानसलब्धि और (२८) पुलाकलब्धि |
ये सभी लब्धियां भावशुद्धि व तपः साधना से ही प्राप्त होती है ।
तत्र तेजो लेश्यालब्धिः क्रोधाधिक्यात प्रतिपन्थिनं प्रति मुखेनाने कयोजन प्रमाणक्षेत्राधिश्रित वस्तुदहन दक्षतीव्रतरतेजो निसर्जनशक्तिः ।
- प्रवसा० द्वार ७२
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- प्रवसा. पन ४३२
अर्थात् तेजोलेश्या लब्धि का धारक व्यक्ति अपने प्रतिद्वन्दी के प्रति क्रोध के वशीभूत होकर अपने मुख से इतना अग्नि सदृश तेज का निस्सारण करता है जिससे अनेक योजन दूरस्थ वस्तु को जलाया जा सकता है ।
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भगवती सूत्र में तेजोलेश्या लब्धि की प्राप्ति का उपाय भी बतलाया गया है । गोशालक ने श्रमण भगवान महावीर से पूछा - तेजोलेश्या लब्धि की प्राप्त कैसे
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