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बीकानेर के व्याख्यान]
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यह कथा लम्बी है। अतएव इतनी सूचना करके ही संतोप करता हूँ।
प्रभो ! आप जन्म, जरा और मरण, इन तीन बानों में ही उलझे रहते तो आप शांतिनाथ न बनते ! लेकिन आप तो संसार को शांति पहुँचाने वाले और शांति का अनुभव पाठ पढ़ाने वाले हुए, इस कारण हम आपको भक्तिपूर्वक वन्दना करते हैं । आपने कौनसी शांति सिखलाई है, इस सम्बन्ध में कहा है
चइत्ता भारह वासं चक्कवही महिड्ढिो । चक्रवर्ती की विशाल समृद्धि प्राप्त करके भी अापने विचार किया कि संसारं को शांति किस प्रकार पहुंचाई जा सकती है ? इस प्रकार विचार कर आपने शांति का मार्ग खोजा और संसार को दिखलाया । जैसे माता कामधेनु का नहीं वरन् अपना ही दूध बालक को पिलाती है, उसी प्रकार आपने शांति के लिए यंत्र-मंत्र-तंत्र आदि का उपयोग नहीं किया किन्तु स्वयं शांतिस्वरूप बनकर संसार के समक्ष शांति का अादर्श प्रस्तुत किया। आपके आदर्श से संसार ने सीखा कि त्याग के बिना शांति नहीं प्राप्त की जा सकती ! यापने संसार को अपने ही उदाहरण से बतलाया है कि सच्ची शांति भोग में नहीं, त्याग में है और मनुष्य सच्चे हृदय से ज्यों-ज्यों त्याग की ओर बढ़ता जायगा त्यों-त्यों शांति उसके समीप प्राती जाएगी।
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