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[ जवाहर-किरणावली
उदायी ने पराजित और बंधनबद्ध चण्डप्रयोत का राज्य संवत्सरी संबंधी क्षमायाचना के उपलक्ष्य में सहर्ष लौटा दिया था। इसे कहते हैं क्षमायाचना ! किसी के अधिकार को दबा रक्खो और फिर उससे क्षमा मांगो तो यह क्षमायाचना के महत्व को बढ़ाना नहीं, घटाना है।
मित्रो ! न मालूम किस पुण्य के उदय से आपको ऐसा संस्कारपूरित वातावरण मिला है ! इस वातावरण की पवित्रता को पहचानो और सांसारिक प्रलोभनों में इतने अधिक मत फंस जाओ कि आत्मा की सुध ही न रहे । प्रत्येक कार्य को प्रारंभ करते समय उसे धर्म की तराजू पर तौल लो। धर्म इतना अनुदार नहीं है कि वह आपकी अनिवार्य प्रावश्यकताओं पर पाबंदी लगा दे। साथ ही इतना उदार भी नहीं है कि आपकी प्रत्येक प्रवृत्ति की सराहना करे । धर्म का
आश्रय लेकर आप कभी दुखी नहीं होंगे। इसलिए मैं कहता हूँ कि अपने जीवन को धर्म के सांचे में ढाल लो। इससे आप कल्याण के पात्र बनेंगे।
बीकानेर, । २६-८-३..)
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