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बीकानेर के व्याख्यान ]
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यह है कि जहाँ नियमित रूप से सूर्य और चन्द्रमा का प्रकाश पहुँचता है वहीं मनुष्य जीवित रह सकता है। जहाँ यह प्रकाश नहीं मिलेगा वहां मनुष्य लम्बे समय तक प्राण धरणा नहीं किये रह सकता।
भगवान् ने इन्द्रियों का स्वरूप बतलाने के साथ ही उनके निग्रह का भी स्वरूप बतलाया है। प्रश्नध्याकरणसूत्र में भगवान् ने मुनि के लिए नाटक देखने का निषेध किया है पर कहीं सूर्य और चन्द्रमा के प्रकाश को भी देखने का निषेध किया है ?
'नहीं!'
'क्यों ?' क्योंकि इसके विना काम नहीं चलता और इससे नेत्रों में विकार भी उत्पन्न नहीं होता।
दुनिया का कोई भी धर्मशास्त्र प्रकृति की बातों को रोकने की हिमायत नहीं करता । सूर्य और चन्द्रमा काप्रकाश जीवन की अनिवार्य वस्तु है। उसके बिना जीवन का निर्वाह संभव नहीं है। ऐसी दशा में अगर कोई सूर्य-चन्द्र को देखने का निषेध करता है तो वह अज्ञानी ही समझा जायगा। जो मनुष्य हठपूर्वक सूरज के प्रकार से बचने की कोशिश करेगा उसका जीवन ही कठिन हो जायगा।
भगवान् ने साधुओं को दीपक आदि के कृत्रिम प्रकाश के उपयोग की मनाई की है, मगर सूर्य-चन्द्र के नैसर्गिक प्रकाश के उपयोग की मनाई नहीं की है। अगर साधु दीपक के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com