Book Title: Jawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Jawahar Vidyapith

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Page 395
________________ ३८६] [जवाहर-किरणावली से समस्त संसार को प्रकाश देता है। किसी को कम और किसी को अधिक नहीं देता। या किसी को प्रकाश दे और किसी को न दे, ऐसा भी नहीं करता। इसी प्रकार मनुष्य के हृदय रूपी आकाश में जब मैत्रीभाव का सूर्य उदित होता है तो उसका प्रकाश प्राणी मात्र को समान रूप से मिलता है। जिसका अन्तःकरण मैत्रीभावना से उज्ज्वल हो जाता है, वह प्रत्येक प्राणी को अपना मित्र समझता है। किसी के प्रति उसके चित्त में दुर्भावना नहीं हो सकती। इस प्रकार मैत्रीभावना की आराधना के लिए आपको प्राणी मात्र का मित्र बनना चाहिए। प्रश्न हो सकता है कि गृहस्थ सब प्राणियों का मित्र कैसे बन सकता है ? उसे लेन-देन करना पड़ता है, कहनासुनना पड़ता है और पचासों काम करने पड़ते हैं, जिससे प्राणी मात्र के प्रति मैत्रीभावना में बाधा पड़ती है। ऐसी स्थिति में मैत्रीभावना की बात साधुओं को भले ही उपयोगी हो, गृहस्थों के लिए वह उपयोगी नहीं हो सकती। इस तरह का विचार भ्रमपूर्ण है। गृहस्थ अगर मैत्रीभावना को धारण नहीं कर सकता तो इसके मायने यह हुए कि वह धर्म का ही पालन नहीं कर सकता। क्या धर्म इतना संकीर्ण है कि सर्वसाधारण उससे लाभ नहीं उठा सकते ? नहीं, ऐसा नहीं है । धर्म का प्रांगण बहुत विशाल है। उसमें सभी के लिए स्थान है। अगर गृहस्थ समझदारी से काम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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