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बीकानेर के व्याख्यान ]
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अपने से विरुद्ध मार्ग पर चलते देखो, कोई धर्म के मार्ग में काँटे विखेरता दिखाई दे तो भी उस पर समभाव रखना चाहिए।
इन चार भावनाओं का सेवन करने वाला भगवान् ऋषभदेव के पथ पर अग्रसर हो सकता है और अपने जीवन को धन्य बना सकता है। भगवान् की स्तुति करने के साथ उनके मार्ग पर चलने वाला ही कल्याण का भागी होता है।
मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतम गणी। मंगलं स्थूलिभद्राचा जैनधर्मो ऽस्तु मंगलम् ॥
समाप्त
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