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४ आत्मोद्धार
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गंभीरतापूर्वक सत्य का विचार न करने वाले लोगों का कहना है कि साधु बनना एक प्रकार की अकर्मण्यता धारण करना है । किन्तु कोई समझदार और विवेकशील पुरुष ऐसी बात नहीं कह सकता | गृहस्थ मुख्य रूप से अपने सांसारिक कर्त्तव्यों का पालन करता है और गौण रूप से धार्मिक कर्त्तव्यों का। उसे दुनियां की भंझटें ऐसी फँसाए रहती हैं कि वह आध्यात्मिक कर्त्तव्य को प्रधान रूप नहीं दे पाता । गृहस्थ का सांसारिक कार्य इसी जन्म में लाभदायक हो सकता है, आगामी जन्मों में नहीं । किन्तु वर्त्तमान जन्म अल्पकाल तक ही रह सकता है और भविष्य अनन्त है । उस अनन्त भविष्य को मङ्गलमय बनाने के लिए गृहस्थी की भंझटों से दूर हट जाना आवश्यक होता है । यद्यपि गृहस्थ भी अपनी मर्यादा के अनुसार धर्म और अध्यात्म की आराधना कर सकता है फिर भी निवृत्ति जीवन में जैसी आराधना की जा सकती है,
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