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ज्ञान और चारित्र
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संसार की समस्त शिक्षाओं का सार ज्ञान और चारित्र की प्राप्ति करना है। चारित्र को आचरण भी कहते हैं, मगर सूक्ष्य दृष्टि से विचार करने पर दोनों में थोड़ा सा अन्तर भी दृष्टिगोचर होता है । चारित्ररूप गुणों की आराधना करने की जो विधि बतलाई गई है उस विधि के अनुसार चारित्र को पालन करना आचरण कहलाता है। विधिपूर्वक चारित्र का पालन न करने से काम नहीं चलता। विधिपूर्वक चारित्र के पालन करने का अर्थ यह है कि चारित्र का पालन ज्ञानपूर्वक ही होना चाहिए । ज्ञान के साथ पाला जाने वाला भाचार ही उत्तम आचार है। वही आचार सफल होता है। ज्ञानहीन प्राचरण और आचरणहीन शान से उद्देश्य सिद्ध नहीं होता। कल्याण को अगर रथ मान लिया जाय तो शान और चारित्र उसके दो पहिये हैं। दोनों की किस प्रकार आवश्यकता है, यह बात एक दृष्टान्त द्वारा समझना ठीक होगा।
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