________________
बीकानेर के व्याख्यान]
[२३५
उचित होगा कि मैं स्वयं परिश्रम किये विना ही इसका भोग करूँ! अगर मैं इस धन को, विना परिश्रम किये ही खाने लगा और गुलछरें उड़ाने लगा तो किसी दिन आप ही मुझे कपूत कहने लगेंगे। कदाचित् पितृप्रेम के कारण आप न कहेंगे तो भी दुनिया का मुँह कौन बन्द करेगा ? फिर इस धन का उपार्जन करके आपने जो ख्याति प्राप्त की है, वह ख्याति मैं कभी नहीं पा सकूँगा। विना कमाये खाने से मैं मिट्टी के पुतले के समान बन जाऊँगा। जब मैं उद्योग कर सकता हूँ तो फिर विना कमाये खाना-पहनना मुझे उचित नहीं मालूम होता। अतः आप कृपा करके प्राज्ञा दीजिए और आशीर्वाद दीजिए। __ अपने पुत्र की कार्यनिष्ठा और साहस देखकर पिता को संतोष हुआ । उसने कहा-ठीक है। सुपुत्र का यही कर्तव्य है कि वह अपने पिता के यश और वैभव में वृद्धि करे । उद्योगशील होना मनुष्य का कर्तव्य है। तुम्हारी प्रबल इच्छा है तो मैं रोकना नहीं चाहता।
साहूकार के लड़के ने जहाज़ तैयार करवाया। समुद्र में जहाज़ किस प्रकार तूफान से घिर जाता है और उस समय किन-किन वस्तुओं की आवश्यकता होती है, इसका विचार करके उसने सब आवश्यक वस्तुएँ जहाज़ में रख ली और यात्रा के लिए प्रस्थान कर दिया । चलते-चलते जहाज़ बीच
समुद्र में पहुँचा तो अचानक तूफान घिर आया । जहाज के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com