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बीकानेर के व्याख्यान ]
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हैं और सन्मान पाने के लिए भक्ति करते हैं तो समझ लीजिए कि अभी मोह की ग्रंथि नहीं खुली है। अगर आप निष्काम भक्ति करेंगे तो आपके शल्य नष्ट हो जाएँगे और देवता भी अापकी पूजा करेंगे। इसलिए मित्रो ! मैं बार-बार दोहराता हूँ कि कामना का परित्याग कर दो और निष्काम भाव से भक्ति करो । कामना करने से ही क्रिया का फल तो मिल नहीं सकता, और क्रिया का फल कामना न करने पर भी मिलता है। फिर कामना करके फल को क्यों तुच्छ बनाते हैं ? हृदय में शल्य क्यों पैदा करते हैं ?
मान लीजिए, एक आदमी इष्ट देव की पूजा के लिए मँजी हुई थाली में पूजा की सामग्री सजाकर, स्नान आदि करके पूजा करने चला। बीच में उसे एक भंगी मिला। वह कहने लगा-पूजा की यह सामग्री मेरे टोकरे में भी डाल दीजिए । तो क्या कोई पुजारी डाल देगा ? ___ 'नहीं!'
कदाचित् दूसरे को उठाने के लिए तो दे भी सकता है, मगर भंगी के टोकरे में क्यों नहीं डालता ? इसीलिए कि टोकरे में मलीन चीज़ भरी है और देवता को चढ़ने वाली पवित्र चीज़ का स्पर्श उससे कैसे होने दिया जाय ?
मित्रो! और लोग तो अपने देव को फूल-पत्ती, इत्र आदि से प्रसन्न करते हैं, मगर आपके भगवान् तो वीतराग हैं । वे इन चीजों से भी प्रसन्न नहीं हो सकते । उन्हें प्रसन्न करने के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com