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बीकानेर के व्याख्यान ]
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भते । पर भगवान् ने सब से पहले नैतिक जीवन की ओर ही दृष्टि किया। उन्होंने सोचा कि यह लोग अगर आलसी बने रहेंगे तो इनकी आत्मा ऊँची नहीं चढ़ सकेगी। अतएव सर्वप्रथम इनका आलस्य मिटाकर इनके जीवन के नीतिमय बनाना आवश्यक है। जब मनुष्य में सामर्थ्य है तो उसका उपयोग होना चाहिये ।
भगवान् ने उस समय की प्रजा से कहा - अरे मनुष्यो ! तुम्हारे हाथ-पैर हैं, नाक-कान हैं, तुम्हारे भीतर शक्ति भरी हुई है, फिर आलस्य में क्यों पड़े रहना चाहते हो ? क्यों किसी की भीख के सहारे जीना चाहते हो ? अपनी शक्ति के पहचाना और अपनी शक्ति के सहारे रहा । ऐसा करने से प्रकृति तुम्हारा साथ देगी । तुम हाथ में हल पकड़ोगे तो बैल भी तुम्हारी मदद करेंगे। अगर तुम हाथ-पैर ही न हिलाओगे तो प्रकृति कैसे मदद करेगी ? इसलिए आलस्य छोड़ो, फितूर मत बढ़ाओ, सादगी से रहे। और अपना भार दूसरों पर मत डालो | अपने लिए आप ही उद्योग कर लो। जब जीवन में इतनी नैतिकता आ जाएगी तो जीवन आध्यात्मिकता की ओर भी अग्रसर हो सकेगा ।
भगवान् की यह बात युगलियों ने स्वीकार की मगरमहाजनो येन गतः स पन्थाः ।
इस कहावत के अनुसार भगवान् को सब काम अपने हाथ से करके बतलाने पड़े। बहुत से काम श्राँखों से देखकर
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