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[जवाहर-किरणावली
बनाने वाले को अल्पारंभी और धन के लिए मिल चलाने वाले को महारंभी कहा है । मतलब यह है कि जीवन की रक्षा के लिए जो कार्य आवश्यक हैं और जिनके विना जीवन की रक्षा नहीं हो सकती, उन कार्यों में होने वाले आरंभ को भगवान्ने अल्पारंभ कहा है और भोग-विलास आदि की अभिलाषा से किये जाने वाले अनावश्यक सावध व्यापार को महारंभ कहा है।
महारंभ से बचाने के लिए ही भगवान् ने पुरुषों को बहत्तर कलाएँ और स्त्रियों को चौंसठ कलाएँ सिखलाईं, जिससे कि सुखपूर्वक नैतिक जीवन व्यतीत हो सके और आध्यात्मिक जीवन में प्रगति हो सके। जब आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश हो चुके तब इन इन्हीं कामों को भगवान् ने त्याज्य बतलाया है। आध्यात्मिक जीवन की साधना के पथ पर
आरूढ़ होने के पश्चात् शरीर पर भी ममता न रखने का विधान किया गया है । भगवान् ने कहा है कि पूरी तरह ममता का त्याग कर दो और आत्मा पर ही ध्यान रक्खो और सोचो कि मैं अविनाशी हूँ।
इस रीति से भगवान् ने आध्यात्मिक विचार फेलाया, जिससे बहुत से लोगों ने अपनी आत्मा को ऊँचा चढ़ाया, अपना कल्याण किया।
सारांश यह है कि आप यह तो कहते हैं कि भगवान् ऋषभदेव के स्तोत्र से पापों का नाश होता है तो फिर हमारे
पापों का नाश क्यों नहीं हुआ, परन्तु स्तोत्र के अनुसार आप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com