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बीकानेर के व्याख्यान ]
इस निर्णय में आपको शंका तो नहीं है ?
'नहीं !'
यद्यपि हृदय गरीब को पुण्यवान् स्वीकार करता है, लेकिन जब मस्तिष्क के विचार हृदय की भावना को दबा लेते हैं तब उस अमीर को ही पुण्यशाली मान लिया जाता है । यह विवेक है ।
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भगवान् के लिए भूतनाथ शब्द का भी प्रयोग किया गया है । इस शब्द में क्या भाव भरा है, यह समझाने के लिए बहुत समय चाहिए। संक्षेप में अभी इतना ही कहता हूँ कि प्रभु प्राणीमात्र के नाथ हैं । भगवान् जब प्राणीमात्र के नाथ हैं तो किसी भी प्राणी को कष्ट पहुँचाना, उसके सुख में बाधा डालना अथवा अपने स्वार्थ में अंधे होकर दूसरे के सुख-दुःख की परवाह न करना उचित नहीं । ऐसा करने वाला भगवान् का सच्चा भक्त नहीं हो सकता । भगवद्भक्ति की प्राथमिक भूमिका भूतमात्र को अपना भाई मानकर उसके प्रति सहानुभूति रखना है । प्राणीमात्र के प्रति आत्मभाव रखकर भगवान् की स्तुति करने से कल्याण का द्वार खुलता है ।
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