Book Title: Jawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Jawahar Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 381
________________ ३७२] [ जवाहर-किरणावली बुरा ही कहेंगे तो आपको जूते पहिनना छोड़ना होगा। चमार को बुरा कहने वाले जरा अंपनी अोर देखें । वे क्या कर रहे हैं ? क्या वे चमार की तरह ही शरीर के चमड़े को नहलानेधुलाने और सिंगारने में ही नहीं लगे रहते हैं ? क्या यह काम चर्मकार का काम नहीं है ? बढ़िया-बढ़िया कपड़े और मोतियों के गहने क्या चमड़ी को सजाने के लिए ही नहीं पहने जाते ? अगर आप अपने शरीर के चमड़े को सिंगार कर दयाभाव रक्खें, भक्ति करें, शरीर को दूसरों की सेवा और परोपकार में लगावें, तब तो आपका चमड़ा रंगना चमारपन नहीं कहलाएगा; और यदि यह कुछ भी न किया, सिर्फ चमड़ी की सजावट में ही लगे रहे तो तुलसीदासजी का कथन आप पर भी लागू होगा ही। ___कई लोग कहते हैं हमसे खादी नहीं पहिनी जाती । वह चमड़ी में चुभती है। ऐसे लोगों को चमड़ी का भक्त कहा जाय या नहीं ? महीन कपड़ों के लिए चाहे पंचेन्द्रिय पशुओं की चमड़ी उतारी जाय, चर्बी निकाली जाय और चाहे देश बर्बाद हो जाय, पर इनकी चमड़ी की सुकुमारता कायम रहनी चाहिए ! इनकी चमड़ी खादी से नहीं छिलनी चाहिए ! ऐसा विचार करने वाले लोगों के दिल में दया का वास कैसे हो सकता है ? किसी पतिव्रता स्त्री ने शृंगार किया और वह श्रृंगार पति को प्रिय न लगा तो वह श्रृंगार भी कोई शृंगार है ? इसी प्रकार जिन वस्त्रों के पहिनने से दया का घात होता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402