________________
बीकानेर के व्याख्यान ]
[३७१ ।
आडम्बर दिखाने के लिए द्रव्य आचार तो पाला, लेकिन हृदय से भक्ति नहीं की वह दूसरे वर्ण में होता हुआ भी चमार ही है।
माला फेर लेना ही भक्ति नहीं है किन्तु परमात्मा के मार्ग पर चलने के लिए तन, धन, प्राण देने के लिए तैयार होना ही भक्ति है। सुदर्शन सेठ आदर्श भक्त था। उसे घर में बैठकर माला फेरने से कोई रोकता नहीं था। फिर वह मरने का खतरा उठाने के लिए क्यों गया ? वह भी आजकल के लोगों की तरह बहाना कर सकता था कि आने-जाने में क्रिया लगती है, इसलिए मैं घर बैठा-बैठा ही वन्दना कर लेता हूँ। मगर इस क्रिया को बचाना वास्तव में क्रिया बचाना नहीं, मगर प्राण बचाने के लिए बहाना करना ही होगा।
बहुत से लोग दान करने में पाप लगने का बहाना करते हैं, मगर वे लोग पाप को देखते होते तो व्याह ही न करते । सच तो यह है कि इस प्रकार की बहानेबाज़ी से धर्म की घोर निन्दा होती है और लोग समझने लगते हैं कि धर्म स्वार्थसाधन का उपाय है । तुलसीदास जी के कथनानुसार भगवान् का भजन न करने वाले चारों वर्ण चमार हैं।
चमड़े का धोना, रंगना और सजाना चमार का काम है। चमार यह काम अपने लिए नहीं, दूसरा के लिए करते हैं। चमार अपना काम छोड़ बैठे तो लोगों को बड़ी कठिनाई हो जाय । ऐसी हालत में अगर आप चमार को एकांततः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com