Book Title: Jawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Jawahar Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 386
________________ बीकानेर के व्याख्यान] [ ३७७ कहा जा सकता है कि चन्द्रमा सौम्य, शीतल और आह्लादजनक है। फिर भगवान् के मुख के साथ उसकी तुलना क्यों नहीं की जा सकती ? लेकिन प्राचार्य मानतुंग चन्द्रमण्डल को घृणापूर्वक देखकर कहते हैं कि यह चन्द्र-बिम्ब तो स्पष्ट ही कलंक से मलीन है। इसके अतिरिक्त चन्द्रमा की कांति तभी तक रहती है जब तक सूर्य का उदय नहीं होता। सूर्य का उदय होते ही वह सूखे पत्ते के समान कान्तिहीन फीका पड़ जाता है । चन्द्रमा को राहु भी ग्रस लेता है। इस प्रकार कहाँ तो एक स्थिति में न रहने वाला चन्द्रमा का विम्ब और कहाँ भगवान् का मुखमण्डल ! वह मुखमण्डल जो सुर नर और उरग के नेत्रों को भी हरण करने वाला है। इसलिए प्रमो ! आपके मुख के सामने तीनों भुवन के पदार्थ तुच्छ दिखाई देते हैं और आपका मुख अनुपम है, अद्वितीय सौंदर्य से युक्त है। इस भक्तामरस्तोत्र के द्वारा परमात्मा से भेंट करना सभी को इष्ट है। इस स्तोत्र को दिगम्बर, श्वेताम्बर मूर्तिपूजक और अमूर्तिपूजक सभी मानते हैं। सभी परम प्रीति के साथ इसका पाठ करके शांतिलाभ करना चाहते हैं । अतएव इसके भावों को ध्यानपूर्वक समझना चाहिए। ____प्राचार्य ने यहाँ जो कुछ कहा है, यदि वह सत्य है तो उस पर गंभीरतापूर्वक विचार करो। अाज हमें स्थूल दृष्टि से परमात्मा के दर्शन नहीं हो सकते, फिर भी चन्द्रमण्डल तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402