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बीकानेर के व्याख्यान ]
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है और दया का घात होने से जो परमात्मा के प्रतिकूल हैं, वे कपड़े क्या पहनने योग्य हैं ?
'नहीं !'
प्रेम, दया, अहिंसा, परोपकार, संयम और सादगी का निर्वाह खादी पहनने से अधिक हो सकता है या मैन्चेष्टर के हिंसामय वस्त्रों के पहनने से ? खाड़ी पहनने से गरूर कम होता है, भावना में सात्विकता आती है, देश-प्रेम जागृत होता है । मिलों का बना वस्त्र राक्षसी वस्त्र है जो संयम और सादगी का विनाश करता है, प्रेम का अन्त कर देता है । इन वस्त्रों के कारण पशुओं की ही नहीं, मनुष्यों की भी हिंसा होती है ।
अब मैं अपनी मूल बात पर आता हूँ। ऊपर के विवेचन से समझा जा सकता है कि जिसके हृदय में मनुष्यों के प्रति दयाभाव होगा प्रायः वह न हिंसा, करेगा न झूठ बोलेगा, न चोरी करना, न परस्त्रीगमन करेगा और न अनुचित संग्रह ही करेगा । क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष क्लेश आदि मानसिक विकारों की उत्पत्ति प्रायः मनुष्य के प्रति ही होती है । हृदय में मानव - दया उत्पन्न होने पर इन सब विकारों पर तुषारपात हो जाता है और जो इन सब पापों एवं विकारें से बच जायगा, स्वाभाविक है कि वह परमात्मा के निकट पहुँचेगा । इसलिए मैं कहता हूँ कि इन पापों का परित्याग करो ।
अगर यकायक पूर्ण रूप से त्याग नहीं कर सकते तो धीरे
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