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________________ बीकानेर के व्याख्यान ] [ ३७३ है और दया का घात होने से जो परमात्मा के प्रतिकूल हैं, वे कपड़े क्या पहनने योग्य हैं ? 'नहीं !' प्रेम, दया, अहिंसा, परोपकार, संयम और सादगी का निर्वाह खादी पहनने से अधिक हो सकता है या मैन्चेष्टर के हिंसामय वस्त्रों के पहनने से ? खाड़ी पहनने से गरूर कम होता है, भावना में सात्विकता आती है, देश-प्रेम जागृत होता है । मिलों का बना वस्त्र राक्षसी वस्त्र है जो संयम और सादगी का विनाश करता है, प्रेम का अन्त कर देता है । इन वस्त्रों के कारण पशुओं की ही नहीं, मनुष्यों की भी हिंसा होती है । अब मैं अपनी मूल बात पर आता हूँ। ऊपर के विवेचन से समझा जा सकता है कि जिसके हृदय में मनुष्यों के प्रति दयाभाव होगा प्रायः वह न हिंसा, करेगा न झूठ बोलेगा, न चोरी करना, न परस्त्रीगमन करेगा और न अनुचित संग्रह ही करेगा । क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष क्लेश आदि मानसिक विकारों की उत्पत्ति प्रायः मनुष्य के प्रति ही होती है । हृदय में मानव - दया उत्पन्न होने पर इन सब विकारों पर तुषारपात हो जाता है और जो इन सब पापों एवं विकारें से बच जायगा, स्वाभाविक है कि वह परमात्मा के निकट पहुँचेगा । इसलिए मैं कहता हूँ कि इन पापों का परित्याग करो । अगर यकायक पूर्ण रूप से त्याग नहीं कर सकते तो धीरे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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