Book Title: Jawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Jawahar Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 374
________________ वीकानेर के व्याख्यान ] [३६५ तक पृथ्वीकाय में रहा । इस प्रकार भगवान की आत्मा कभी पृथ्वीकाय में रही और कभी मनुष्य शरीर में । अतएव सोचना चाहिए कि सन्निकर में तो मनुष्यशरीर को भगवान महावीर का स्वरूप मान और दूर में पृथ्वी में भी ईश्वरीय सत्ता मानें । ऐसा समझकर किसी की हिंमा न करने से परमात्मा की पूजा हो जायगी। जब भगवान् भूतनाथ हैं तो पृथ्वीकाय के भी नाथ हैं। कदाचितू आप परमात्मा को नहीं देख सकते तो भी वे जिनके नाथ हैं, उन्हें तो देखते हैं ? अतएव परमात्मा के नाते से ही सब प्राणियों के साथ सलूक करो । प्राणियों की सेवा करने से ईश्वर की सेवा हो जायगी। ईश्वरीय आदेश का पालन ही ईश्वर की सच्ची सेवा है । और ईश्वर का आदेश है कि किसी भी प्राणी को कष्ट मत पहुँचाओ। । , मनुष्य का मनुष्य का साथ विशेष सम्बन्ध है, इसलिए मनुष्य की हिंसा त्यागने के लिए विशेष रूप से कहा जाता है। जो मनुष्य पर दयाभाव रक्खेगा वह दूसरे जीवधारियों पर भी दया रक्खेगा। मगर मनुष्य ही मनुष्य को अधिक सताता है। पशुओं को तो केवल हाड़, मांस, चर्वी आदि के लिए मारा जाता है, लेकिन मनुष्य, मनुष्य का सैकड़ों तरह से घात करता है । मनुष्य को मनुष्य से जितना भय लगा रहता है, उतना किसी पिशाच और राक्षस से भी नहीं लगता। यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402