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हे प्रभो ! आपके विद्यमान गुणों का यथावस्थित रूप से अभ्यास करने वाला आप सरीखा हो जाता है, इस बात में मुझे कोई आश्चर्य नहीं लगता। यह तो संसार में भी देखा जाता है कि किसी लक्ष्मीवान् की सेवा करके सेवक स्वयं लक्ष्मीवान् बन जाता है। साधारण मनुष्य भी अपने सेवक को अपना सरीखा बना लेता है तो आपके गुणों में लीन हो जाने वाला अगर आप सरीखा ही हो जाता है तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ?
प्रश्न हो सकता है कि भगवान् के गुणों का अभ्यास किस प्रकार किया जाय ? भगवान् अरूपी सत्ता हैं, उनके अनन्त गुण हैं, ऐसी दशा में उनके गुणों का अभ्यास करने की क्या विधि हो सकती है ? ___इस प्रश्न के उत्तर में ज्ञानियों का कहना है कि भगवान् के गुणों का अभ्यास करना कठिन नहीं है। लेकिन लोगों ने ऊपरी आडम्बर में पड़कर कठिनाई मान ली है, इसी कारण कठिनाई मालूम होती है। भगवान में जो गुण हैं वे उनके नाम से अच्छी तरह प्रकट हो जाते हैं।
भगवान् के 'भुवनभूषण' नाम के विषय में कल कहा जा
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