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[जवाहर-किरणावली
आ गया है । मगर विश्वास का होना अत्यन्त आवश्यक है। __ महाभारत के अनुसार अर्जुन और दुर्योधन श्रीकृष्ण को अपनी-अपनी ओर से युद्ध में सम्मिलित होने का निमंत्रण देने गये थे। कृष्ण उस समय सो रहे थे। उन्हें जगाने का तो किसी में साहस नहीं था, अतएव दोनों उनके जागने की प्रतीक्षा करने लगे। अर्जुन में कृष्ण के प्रति सेवकभाव था, अतएव उसने उनके चरणों की ओर खड़ा रहना उचित समझा । वह चरणों की ओर ही खड़ा हो गया। दुर्योधन में अहंकार था । वह सोचता था-मैं राजा हेोकर पैरों की ओर कैसे खड़ा रह सकता हूँ? इस अभिमान के कारण वह कृष्ण के सिर की ओर खड़ा हुआ। कृष्ण जागे। कोई भी मनुष्य जब सोकर उठता है तो स्वाभाविक रूप से पैरों की ओर वाले मनुष्य के समीप और सिर की और वाले मनुष्य से दूर हो जाता है। इसके अतिरिक्त पहले उसी पर दृष्टि पड़ती है जो पैरों की ओर खड़ा होता है। इस नियम के अनुसार अर्जुन, कृष्ण के नज़दीक हो गये और अर्जुन पर ही उनकी दृष्टि पहले पड़ी।
दुर्योधन पश्चात्ताप करने लगा कि सिर की तरफ क्यों खड़ा हो गया! हाय ! मैं पैरों की तरफ क्यों नहीं खड़ा हुआ ! अर्जुन, कृष्ण से पहले मिल रहा है । कहीं ऐसा न हो कि वे उसका साथ देना स्वीकार कर लें । मैंने इतनी दौड़
धूप की। कहीं ऐसा न हो कि मेरा पाना वृथा हो जाय ! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com