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बीकानेर के व्याख्यान ]
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पीना छूट जायगा और उनका दुःख दूर करने की चिन्ता लग जायगी। इसी प्रकार विचार कर बड़ी-बड़ी ऋद्धि वाले अपनी ऋद्धि छोड़ देते हैं। धन्नाजी बत्तीस कोटि दीनारों का त्याग करके मुनि बने थे। मुनि होने के बाद वे ऐसा भोजन करते थे जैसा गरीब से गरीब भी करना पसंद नहीं कर सकता। आज यह बातें आपको अद्भुत मालूम होती हैं और आपकी कल्पना में भी नहीं आतीं, लेकिन जैन कथाओं पर विचार करो कि वे क्या संदेश देती हैं ? उनसे क्या परिणाम निकलता है ? बत्तीस कोटि दीनारों के स्वामी का भोजन कैसा रहा होगा? और अब वही दो दिन के बाद तीसरे दिन भोजन करते हैं और वह भी रूखा-सूखा, नीरस, बचा-खुचा, जिसे भिखारी भी खाना पसंद न करे। यह बात आज कल्पना में भी आती है ? थोड़ी देर के लिए इसे कल्पना ही मान लो, फिर भी टाल्सटाय आदि के सिद्धान्तों पर दृष्टि डालते हुए विचार किया जाय तो मालूम होगा कि यह कल्पना भी कितनी सहृदयतापूर्ण, सत्य, शिव, सुन्दर और बुद्धिमत्ता से परिपूर्ण है ! लेकिन एक बात आप ध्यान में रखिए । कल्पना किसी सर्वथा असत् पदार्थ की नहीं की जाती। जो वस्तु किसी अंश में विद्यमान होती है, जिसका किसी रूप में सिलसिला चालू होता है, उसी की कल्पना की जाती है । कल्पना के लिए कोई आधार तो होना ही चाहिए । निराधार कल्पना संभव नहीं है। धन्ना (धन्यकुमार ) मुनि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com