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[ जवाहर-किरणावली
- - - कपड़े जब तक आपने नहीं पहने थे, पवित्र माने जाते थे, मगर आपके पहन लेने पर यह निर्माल्य हो गये । इसी प्रकार श्राप स्वादिष्ट और सुगंधित भोजन पेट में डालते हैं। मगर पेट में पहुँचकर उसकी क्या स्थिति हो जाती है ? क्या
आप पवित्र वस्तु को अपवित्र करने के लिए ही पैदा हुए हैं ? मित्रो ! दूसरे के कल्याण में अपना कल्याण मानने से आत्मा का उद्धार होने में देर नहीं लगती। इसलिए शास्त्र में कहा गया है
परोपकाराय सतां विभूतयः ।। अर्थात्-सत्पुरुषों की विभूतियाँ परोपकार के लिए होती हैं।
टाल्सटाय ने धीरे-धीरे ही सही, पर अपनी सम्पत्ति किस प्रकार परोपकार में लगाई, यह देखने योग्य है।
आप सदा माल खाते हैं। आपके खाने के समय एक दिन कोई भूखा आ गया और आपने उसे थोड़ा-सा दे दिया तो बुरा नहीं है, पर ऐसा करने में आपकी कोई विशेषता भी नहीं है। विशेषता तो तब है जब आप इस बात का विचार करें कि-'यह भूखा क्यों मर रहा है ? एक जून का भोजन तो मैंने दिया है, पर इससे क्या इस की दरिद्रता जीवन भर की दूर हो जायगी ? इसका यह दुःख किस प्रकार दूर हो सकता है ? अगर आप इस प्रकार विचार करेंगे और आपके हृदय में थोड़ी-बहुत भी दयाभावना होगी तो आपकाखानाShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com