Book Title: Jawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Jawahar Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 349
________________ ३४०] [ जवाहर-किरणावली - - - कपड़े जब तक आपने नहीं पहने थे, पवित्र माने जाते थे, मगर आपके पहन लेने पर यह निर्माल्य हो गये । इसी प्रकार श्राप स्वादिष्ट और सुगंधित भोजन पेट में डालते हैं। मगर पेट में पहुँचकर उसकी क्या स्थिति हो जाती है ? क्या आप पवित्र वस्तु को अपवित्र करने के लिए ही पैदा हुए हैं ? मित्रो ! दूसरे के कल्याण में अपना कल्याण मानने से आत्मा का उद्धार होने में देर नहीं लगती। इसलिए शास्त्र में कहा गया है परोपकाराय सतां विभूतयः ।। अर्थात्-सत्पुरुषों की विभूतियाँ परोपकार के लिए होती हैं। टाल्सटाय ने धीरे-धीरे ही सही, पर अपनी सम्पत्ति किस प्रकार परोपकार में लगाई, यह देखने योग्य है। आप सदा माल खाते हैं। आपके खाने के समय एक दिन कोई भूखा आ गया और आपने उसे थोड़ा-सा दे दिया तो बुरा नहीं है, पर ऐसा करने में आपकी कोई विशेषता भी नहीं है। विशेषता तो तब है जब आप इस बात का विचार करें कि-'यह भूखा क्यों मर रहा है ? एक जून का भोजन तो मैंने दिया है, पर इससे क्या इस की दरिद्रता जीवन भर की दूर हो जायगी ? इसका यह दुःख किस प्रकार दूर हो सकता है ? अगर आप इस प्रकार विचार करेंगे और आपके हृदय में थोड़ी-बहुत भी दयाभावना होगी तो आपकाखानाShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402