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[जवाहर-किरणावली
- - - --...-- - -- -- -- स्मरणीय बने हुए हैं, वैसे न हो सके होते।
भगवान महावीर की तरफ खयाल करो। उन्होंने तप का कष्ट क्यों सहन किया ? उन्हें कर्म ही खपाने थे तो कर्म खपाने के लिए शुक्लध्यान आदि साधनों को वे भलीभाँति जानते थे। मगर भगवान् ने व्यवस्थित रूप से धर्मशासन चालू रह सके, इस उद्देश्य से संघ की स्थापना की और संघ का उद्धार करने के लिए, जनता को सिखाने के लिए तप किया। इसी हेतु भगवान् ने पाँच मास और पच्चीस दिन के महान् उपवास के पारणे में उड़द के छिलके खाये । ऐसा करके उन्होंने तप, त्याग और सादगी का आदर्श स्थापित किया। ऐसी स्थिति में आप लोग सादगी न धारण करके मौज-शौक में रहते हुए ही धर्म माने तो कहना होगा कि अभी आप दयाधर्म से दूर हैं।
जो भावनाशील व्यक्ति संसार के दुःखों को अपना ही दुःख मानता है, उसे अपना व्यक्तिगत दुःख जान ही नहीं पड़ता। रोग होने पर आप दुगंधयुक्त और कडुवी दवाई गले के नीचे उतार जाते हैं । आप जानते हैं कि हमारे पेट में रोग है और यह दवा हमें शांति पहुँचायगी । इसी विचार से आप दवा पी जाते हैं और वैद्य को पुरस्कार देते हैं। ऐसी ही नात महापुरुषों के कष्टसहन में भी है । अन्तर है तो यही कि आप सिर्फ अपने ही दुःख को दुःख समझते हैं और महापुरुष संसार के
दुःख को अपना दुःख मानते हैं। राम को अपनी माता का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com