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[जवाहर-किरणावली
के लिए इसकी खोज की गई है परन्तु वास्तव में यह अपना स्वार्थ साधने और लोगों को पराधीन रखने का साधन है। इस प्रकार की बातें संसार को खराब कर रही हैं।
विजली, रेल, कल, कारखाने आदि मस्तक की उपज हैं। यह हृदय की उपज नहीं हैं । हृदय की उपज के काम तो भगवान ऋषभदेव ने बतलाये हैं। एक हल बैलों से चलता है और दूसरा एंजिन से । बैलों से चलने वाले हल की उपज हृदय की है और एंजिन से चलने वाले हल की उपज मस्तिष्क की है। हृदय की उपज और मस्तक की उपज के कामों की पहचान यह है कि जिस काम से अपना भी भला हो और दूसरे का भी भला हो वह काम हृदय की उपज है। जिन कामों से अपना ही स्वार्थ सिद्ध करना होता है, दूसरे के कल्याण की अोर दृष्टिपात नहीं किया जाता किन्तु दूसरों को पंगु बनाना अभीष्ट होता है, वे काम मस्तिष्क की उपज हैं। मस्तिष्क की उपज के काम राक्षसी राज्य के हैं और हृदय की उपज के काम रामराज्य के हैं । सिक्का भी मस्तक की उपज का नमूना है। उसके संबन्ध में कहा तो यह जाता है कि सिक्के से दुनिया के व्यवहार में बड़ा सुभीता होता है और इसीलिए उसका निर्माण किया गया है। लेकिन वास्तविक बात यह नहीं है। थोड़ी देर के लिए यह कथन सही मान लिया जाय तो सिक्का बना लेने की छूट सब के लिए क्यों नहीं है ? प्राचीन काल में सोनैया ( स्वर्ण मोहरें ) थे। मगर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com