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बीकानेर के व्याख्यान]
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क्लाइव-हमारे बादशाह के यहाँगुलाम तो हैं, पर जिस्म के नहीं, दिल के गुलाम हैं।
नवाब को कुछ नवीनता मालूम हुई । उसने पूछा-क्या मतलब है ? दिल के गुलाम कैसे होते हैं।
क्लाइध-जिस्म का गुलाम गुलामी के बदले में धन चाहता है और वह तभी तक गुलाम रहता है जब तक उसे रकावियों में अच्छा खाना मिलता रहता है । लेकिन दिल का गुलाम ऐसा है कि गुलामी छोड़ देने के लिए उसके टुकड़ेटुकड़े कर दिये जाएँ तो भी वह अपने मालिक से नहीं बदलता । उन्हीं गुलामों में से एक मैं भी हूँ।
मित्रो! आपको भी उस अदृश्य शक्ति के इसी प्रकार के दास बनना चाहिए । कहा गया है
दीनदयाल दीनबन्धु के। खानाजाद कहास्यां राज ॥ तन धन प्राण समर्फी प्रभु ने । इन पर वेगि रिमास्यां राज ॥ अाज म्हारा संभव जिनजीरा ।
हित चित से गुण गास्यां राज। परम प्रभु के ऐसे गुलाम बनो तो संसार तुच्छ जान पड़ेगा और प्राण जाने पर भी स्वामी से विमुख न होओगे। हृदय में परमात्मा का वास होते ही रस का ऐसा प्रवाह बहने लगेगा मानो शरपूर्णिमा के चन्द्र का रस प्रापके ही हपय में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com