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बीकानेर के व्याख्यान ]
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सम्यग्दृष्टि के साथ उसे समझने का प्रयत्न करने पर उसमें कई खूबियां मिलती हैं ।
शास्त्र वह है जिसके सुनने पर आत्मा में नवीन ज्योति जागृत होती है । जिसके सुन लेने पर भी नवीन ज्योति नहीं जागती, उसे सुना भले ही, पर ज्योति जागने पर कुछ निराली ही बात होती है ।
गांधीजी ने गीता की अन्तिम टिप्पणी में लिखा हैयोगेश्वर कृष्ण का अर्थ है, अनुभवसिद्ध शुद्ध ज्ञान और अर्जुन का आशय है-उस शुद्ध ज्ञान के अनुसार की जाने वाली क्रिया । थोथा ज्ञान काम का नहीं । थोथीं क्रिया भी निकम्मी है । अनुभवसिद्ध शुद्ध ज्ञान से युक्त शुद्ध क्रिया ही सुफलदायिनी होती है। जहां दोनों का समन्वय है, वहाँ सिद्धि हाथ बांधे खड़ी रहती है ।
श्रीकृष्ण ने कहा था- हम शस्त्र नहीं उठाएँगे, केवल ज्ञान देंगे । इसका अर्थ यही है कि ज्ञान प्राप्त करके क्रिया करने से ही सिद्धि प्राप्त होती है ।
हतं ज्ञानं क्रियाहीनं, हता चाज्ञानिनां क्रिया ।
क्रिया से शून्य ज्ञान और शान से शून्य क्रिया- दोनों बेकार हैं । सारांश यह है कि उस अदृश्य शक्ति पर विश्वास रखकर निष्काम भाव से ज्ञानयुक्त क्रिया करोगे तो बेड़ा पार हुए विना नहीं रहेगा ।
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