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बीकानेर के व्याख्यान]
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इस प्रकार सोचकर दुर्योधन ने किसी संकेत द्वारा कृष्ण पर अपना आना प्रकट कर दिया ।
अर्जुन के प्रणाम करने पर श्रीकृष्ण ने आने का कारण पूछा । अर्जुन ने कहा-कौरवों के साथ युद्ध होना निश्चित हो चुका है। अतएव मैं आपको युद्ध का निमंत्रण देने आया हूँ।
श्रीकृष्ण-मुझे जो आमंत्रित करे, मैं उसी के यहाँ जाने को तैयार हूँ । लेकिन दुर्योधन भी पाया है। उसे भी निराश करना उचित नहीं होगा। इसलिए एक ओर मैं हूँ और दूसरी और मेरी सेना है। दोनों में से जिसे चाहो, पसंद कर लो।
अर्जुन को श्रीकृष्ण पर विश्वास था। उसने कहा-मैं आपको ही चाहता हूँ। ___ अर्जुन की माँग सुनकर दुर्योधन बहुत प्रसन्न हुआ। वह मन में सोचने लगा-मेरा भाग्य अच्छा है, इसी कारण तो अर्जुन ने सेना नहीं मांगी। युद्ध में तो आखिर सेना ही काम श्राएगी। अकेले कृष्ण क्या करेंगे?
अर्जुन के बाद दुर्योधन की बारी आई। उससे भी पाने का प्रयोजन पूछा गया। दुर्योधन ने भी यही कहा कि मैं भी युद्ध का निमंत्रण देने आया हूँ। श्रीकृष्ण ने कहा- ठीक है। एक ओर मैं ओर दूसरी और मेरी सेना ! अर्जुन ने मुझे मांग लिया है । तुम क्या चाहते हो ?
दुर्योधन मन में सोच रहा था कि मैं अकेले कृष्ण को लेकर क्या करूँगा ? मुझे तो सेना चाहिए जो काम आएंगी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com