________________
३२४ ]
[ जवाहर - किरणावली
संबन्ध में एक बात सुनी थी । उसने एक बार ढाका के नवाब से मिलने की इच्छा प्रकट की । नवाब ने मिलने का समय दिया और साथ ही कहला भेजा कि तुम्हें नीचे खड़ा रहना पड़ेगा । क्लाइव ने उत्तर दिया- मुझे जहां खड़ा करोगे वहीं खड़ा रह जाऊँगा ।
नवाब ने क्लाइव से मिलने की तैयारी की। उसने अपने गुलामों को अच्छी पोशाक पहनाकर कतार में खड़ा किया । गुलाम नियमानुसार हाथ बांध कर और सिर नीचा करके खड़े हो गये । क्लाइव को नीचे स्थान पर बिठलाया गया और नवाब साहब रौव के साथ तख्त पर विराजमान हुए ।
नवाब की धारणा थी कि जिसके पास जितने ज्यादा गुलाम हों, वह उतना ही बड़ा आदमी होता है । अतएव नवाब ने क्लाइव से पूछा- तुम्हारे बादशाह के यहां कितने गुलाम हैं ? क्लाइव - गुलाम हैं ही नहीं ।
नवाब - तुम्हारा बादशाह इतना बड़ा है और गुलाम हैं ही नहीं ?
क्लाइव ने अपना विचार पलट कर कहा- नहीं, हैं तो सही । नवाब - कितने हैं ?
क्लाइव - उनकी कोई निश्चित संख्या नहीं है ।
नवाब - परस्पर विरोधी बातें कैसे कह रहे हो ? क्लाइव - समझ में फर्क है; बातें विरोधी नहीं हैं। नवाब - समझ में फर्क कैसा ?
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com