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[जवाहर-किरणावली
प्राप्त करता है, किन्तु उस सेवा का बदला अपनी ओर से उचित रूप में नहीं देता, उसे कृतज्ञ या कर्तव्यनिष्ट नहीं कहा जा सकता । सचा श्रीमान् ऐसा नहीं करेगा।
इसी प्रकार ग्रामस्वामी, देशस्वामी और चक्रवर्ती की सेवा से अधिक-अधिक लाभ होता है। चक्रवर्ती की सेवा करने पर चक्रवर्ती राजा का भी पद दे देता है । और चक्रवर्ती भी अपने राज्य की उन्नति की प्राशा से इन्द्र की सेवा करता है । अर्थात् चक्रवर्ती भी इन्द्र की प्राशा रखता है और हे प्रभो! इन्द्र भी तेरा दास है। ऐसी स्थिति में अगर मुझे आप मिलगये तो फिर क्या प्राप्त करना शेष रह गया ?
गरीब लोग सेठ की सेवा करते हैं और सेठ ग्रामधनी की सेवा करता है । वह जानता है ग्रामधनी ग्राम का स्वामी है। मेरा वैभव उसी के अनुग्रह पर निर्भर है। वह चाहेगा तो रह सकूँगा, नहीं चाहेगा तो गाँव छोड़कर भागना पड़ेगा। ऐसा सोचकर सेठ, ग्रामधनी की सेवा करता है । और ग्रामधनी, देशधनी की सेवा करता है। देशधनी चक्रवर्ती की आशा रखता है और सोचता है कि चक्रवर्ती की कृपा रहने पर ही मैं राजा रह सकता हूँ। मगर चक्रवर्ती भी देव की भाशा रखता है। वह समझता है कि मेरा अखंड एकछत्र राज्य दैवी कृपा पर ही निर्भर है। दैवी कृपा से अनायास ही जो कार्य हो जाता है वह दैवी कृपा के अभाव में बहुत कुछ प्रयत्न करने पर भी नहीं हो सकता। इस कारण चक्रवर्ती, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com