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[ जवाहर-किरणावली
चल रही है, परन्तु एक सत्ता वह है जिस पर किसी की सत्ता नहीं चलती:) उस सत्ता का श्राश्रय समस्त दुःखों का अन्त करने वाला है। वह स्वतः मंगलमयी सत्ता अपने आश्रित को मंगलमय बना लेती है। वह सत्ता क्या है ?
अनन्त जिनेश्वर नित नमू, अद्भुत ज्योति अलेख । ना कहिये ना देखिये,
जाके रूप न रेख ॥ अनन्त ।। यहाँ भगवान् अनन्तनाथ को नमस्कार किया गया है। भगवान् को चाहे अनन्तनाथ कहो, चाहे आदिनाथ कहो, बात एक ही है। भक्तामरस्तोत्र में ही इसका स्पष्टीकरण कर दिया गया है:
स्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसंख्यमाद्यम्, ब्रह्माणमीश्वरमनन्तमनङ्ककेतुम् । योगीश्वरं विदितयोगमनेकमेकं, .
ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः ॥ अर्थात्-हे प्रभो! संत पुरुष अनेक नामों से तेरी उपासना करते हैं। कोई तुझे अव्यय (अच्युत ) कहता है, कोई त्रिभु, अचिन्त्य, असंख्य, आध, ब्रह्मा, ईश्वर, अनन्त, अनंगकेतु, आदि नामों से तुझे पुकारता है। मगर तू वास्तव में एक है । इन सब नामों में तेरी ही शक्ति व्याप्त है । परमात्मा
के वाचक सभी शब्द तेरे ही गुणों पर प्रकाश डालते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com