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बीकानेर के व्याख्यान
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आप वचन बेच देंगे और गूंगा होना स्वीकार कर लेंगे ? और आपकी काया की कीमत क्या है ? कितना मूल्य लेकर आप अपनी काया त्याग सकते हैं ? इन प्रश्नों पर विचार करो तो असली बात समझ में आयगी। जब इनका महत्व इतना अधिक है और यह उत्तम वस्तुएँ हैं तो इन्हें उत्तम काम में ही लगाना चाहिए या नीच काम में लगाना चाहिए ? किसी पागल को राज्य देने लगो तो उसके किस काम का? अर्थात् मन राज्य से भी मूल्यवान् है। वाणी की महिमा किसी गूंगे से पूछो। उसे वाणी और मोतियों की माला में से एक चीज़ देना चाहो तो वह माला पसन्द नहीं करेगा; वाणी ही लेना चाहेगा । और काया के सहारे तो यह सब खेल ही है! यह तीनों चीजें आपको मिली हैं और वे भी दुरुस्त हालत में मिली हैं, यह कितने आनन्द और संतोष की बात है ! जिन्हें यह प्राप्त नहीं हैं, उनके साथ अपनी तुलना करके देखो तो ज्ञात हो कि यह अपूर्व और अमूल्य वस्तुएँ हैं। किन्तु वादामपाक खाते-खाते जिसे अजीर्ण हो गया है वह रोटी की कीमत नहीं समझता, उसी प्रकार आप भी इस अपूर्व सम्पत्ति की कीमत नहीं समझते। ___ मन वचन और काय अत्यन्त तीव्र पुण्य के उदय से मिले हैं और धर्म रूपी सीप हमारे सामने मुँह फाड़े खड़ा है, तो हम इन्हें पानी के बूंद की तरह धर्म-सीप के ही मुँह में क्यों न डाल दें ? धर्म और परमेश्वर एक ही हैं, दो नहीं । उसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com