________________ 312] [ जवाहर-किरणावली परिग्रह में आदि से ही पाप है। इस पाप को मिटाने के लिए ही महापुरुषों ने परिग्रह के त्याग की कथा बनाई है। श्रीकृष्ण में ऐसी शक्ति थी कि वे गर्भ में रहे हुए कंस को मार सकते थे। फिर भी वे ग्वालों के साथ रहे, ग्वालों का काम करते रहे, ग्वालों के वस्त्र पहनते रहे। इसका उद्देश्य क्या था ? सादगी का महत्त्व प्रकट करने के लिए ही उन्होंने ऐसा किया। उन्होंने समाज में बड़े समझे जाने वालों का सम्पर्क गरीबों के साथ कर दिया / गरीब-अमीर के बीच की दीवाल तोड़ दी और यह दिखा दिया कि सादगी में ही धर्म है। इसी लिए कवियों ने उनके स्तोत्र बनाये हैं / एक कवि कहता है मोर मुकुट सिर पर धरें, उर गुजन की माल / वाववि मेरे उर बसो, सदा विहारीलाल / / कवि विहारीलाल कहते हैं-मेरे हृदय में वही वेष बसा रहे जिसमें सिर पर मोर-पंख का मुकुट है, गले में चिर्मियों की माला है और कमर में लंगोटा है ! कवि ने यहाँ उस रूप की कामना की है जिसके लिए धन की आवश्यकता नहीं होती। उसने धनिकों के वेष की कामना नहीं की / श्रीकृष्ण ने धनिकों और गरीबों के बीच की दीवाल तोड़ने के लिए ही यह चरित रचा था / श्रीमंतों और गरीबों के बीच की दीवाल तोड़ने वाले महापुरुषों में भगवान् ऋषभदेव सब से प्रथम हैं। उन्होंने उस समय के निरुद्यम लोगों से कहा था कि कल्पवृक्ष की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com